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घर छोड़नेकी आवश्यकता नहीं

आपका मैनपुरीका लिखा पत्र मिला। आपकी भावुकता सराहनीय है परन्तु प्रत्येक काम बहुत विचारके बाद करना चाहिये। आपकी अभी बाईस सालकी उम्र है। घरमें जवान पत्नी और छोटा बच्चा है—जो आपके ही आश्रित हैं। घरमें और लोग भी हैं। ऐसी हालतमें घबराकर घरसे निकल जाना कहाँतक उचित है, इसपर आपको गम्भीरतासे विचार करना चाहिये। आपने छ: महीनेमें घरसे चले जानेका और फिर एकान्तमें रहनेका निश्चय किया है, सो तो ठीक है। परन्तु ऐसा एकान्त आपको कहाँ मिलेगा। जहाँ आपका चित्त भजनमें ही लगा रहे; ऐसी जगह दुनियामें आज कहाँ है? सच्चा एकान्त तो मनके निर्विषय होकर भगवत्परायण होनेमें है। आपको आजकी दुनियाका अनुभव नहीं है, इसीसे आप घरको ‘मायाजाल’ और बाहरको ‘मायासे मुक्त’ मानते हैं। अनुभव तो यह बतलाता है कि मायाका जाल घरकी अपेक्षा बाहर ज्यादा फैला है। घरमें तो एक जिम्मेवारी होती है, कर्तव्यका एक बोध जाग्रत् रहता है, जिससे जीवन प्रमादालस्यमें नहीं पड़ता। बाहर तो सारा जीवन बेजिम्मेवार हो जाता है। और यदि खाने-पहननेको अच्छा मिलनेका सुयोग हो गया तब तो प्रमादसे जीवन छा जाता है। घरसे घबराकर कभी नहीं भागना चाहिये। घरको अपना न मानकर भगवान‍्का मानिये और घरवालोंको भगवान‍्की मूर्ति मानिये तथा घरहीमें रहकर घरकी वस्तुओंके द्वारा तन-मन-धनसे उनकी नम्रतापूर्वक सेवा कीजिये। मुँहसे भगवान‍्का नाम लेते और मनको भगवान‍्में लगाते आपको कोई रोक नहीं सकता। फिर आप स्वयं ही लिखते हैं कि ‘घरवाले हमें ईश्वरका भजन करनेसे रोकते नहीं हैं।’ फिर आप क्यों भागना चाहते हैं? मेरे पास आजकल कम उम्रके विवाहित और अविवाहित युवकोंके ऐसे बहुत-से पत्र आते हैं, जो घबराकर घरसे भागना चाहते हैं। मैं सबसे यही निवेदन करना चाहता हूँ कि भागनेसे ही भजन नहीं बनेगा, न मायाजाल ही छूटेगा और न भगवत्प्राप्ति होगी। सदाचारी, संयमी, सहनशील, नम्र और भजनके अभ्यासी बनिये। घरमें रहकर प्रतिकूलताका सहन कीजिये। बहुत जगह तो ऐसा होता है कि सहनशीलताके अभावसे ही ऐसी वृत्ति होती है—मनके प्रतिकूल किसी भी बातको सहनेकी शक्ति न होनेसे पिण्ड छुड़ाकर भागनेको मन होता है। यह कमजोरी है—त्याग नहीं; यह मनके अनुकूल परिस्थितिमें राग है—विषयोंसे वैराग्य नहीं। अतएव मेरी नम्र सम्मति तो यही है और बड़े बलके साथ दृढ़तापूर्वक मैं यह कहता हूँ कि आप इस अवस्थामें घर छोड़नेका विचार बिलकुल त्याग दें और अपने स्वभावको सहिष्णु बनाकर माता-पिताकी और घरकी भगवद्भावसे सेवा करें।

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