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॥ श्रीहरि:॥

कुछ आवश्यक बातें

(१) भगवान‍्से प्रार्थना तो इसी बातकी करनी चाहिये कि वे जो ठीक समझें, वही होने दें। उसके विरुद्ध हमारे मनमें कोई चाह हो ही नहीं, हो तो वे उसे कभी पूरा न करें।

(२) ब्रह्मचर्यका खयाल रखनेकी बात मैंने आपके शरीरके खयालसे लिखी थी। यों तो मनुस्मृतिके अनुसार—रजोधर्मके बाद पहले चार दिन छोड़कर उसके बादकी बारह रात्रियोंमें अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, अमावास्या, पूर्णिमा, पर्वदिन, श्राद्धादिके दिन टालकर शेष रात्रियोंमें केवल दो बार स्त्री-सहवास करना भी ब्रह्मचर्य ही है। ब्रह्मचर्यरक्षाके उपाय ‘ब्रह्मचर्य’ नामक पुस्तकमें देखिये।

(३) रजस्वला स्त्रियोंको सूतके या काठके मनियोंकी माला फेरनी चाहिये। रामायण और गीताका पाठ अलगसे करना चाहिये। पुस्तकोंका स्पर्श न किया जाय तो अच्छा है।

(४) बलिवैश्वदेव न करनेमें कर्मलोपका दोष है, करनेमें पवित्रता आती है। हो सके तो रोज करना चाहिये।

(५) सारे संसारमें दु:ख बढ़नेके कारण हैं—जीवोंके प्रारब्ध। आजकल जो—

(क) दम्भ, दर्प, काम, क्रोध, ईर्ष्या, कामना आदि फैले हैं,

(ख) भगवान् पर आस्था घट रही है,

(ग) भोग-सुखकी स्पृहा बढ़ रही है और

(घ) सभी बातोंमें जीवनका व्यवहार नकली—दिखावटी हो रहा है, श्रद्धा नष्ट हो रही है, सत्य जा रहा है, जीवन कृत्रिमतासे भर रहा है।

—यह भी दु:खका कारण है। इससे विपरीत होनेसे ही सुख हो सकता है।

(६) गृहस्थके लिये आवश्यक बात है भगवान‍्को याद रखते हुए भगवत्पूजाके भावसे कर्तव्यका पालन करना। गृहस्थ, ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, संन्यासीके पालनीय धर्म मनुस्मृतिमें देखिये। सबसे अधिक परमावश्यक वस्तु है भगवान‍्की शरणागति और भगवदर्पणका सच्चा भाव।

(७) सबसे अधिक हानि भगवान‍्में अविश्वास, नकली जीवन, पापोंके आश्रय और दैवी-सम्पत्तिके त्यागसे हो रही है।

(८) स्त्रियों और बच्चोंमें बुरी आदत हो तो उन्हें प्रेमसे समझाकर, आवश्यकतानुसार बिना क्रोधके कभी डाँटकर और स्वयं उस बुरी आदतके विपरीत उत्तम आचरणका आदर्श उनके सामने रखकर उन्हें सुधारना चाहिये।*

* ‘गीता-तत्त्वांक’ छठे अध्यायकी व्याख्याको ध्यानसे पढ़िये। उससे आपको अपने प्रश्नका काफी उत्तर मिल जायगा।

भगवान‍्की दयासे ही सब मोहका नाश हो सकता है। उनकी दयापर विश्वास कीजिये, यह आपके किये ही होगा। मुझमें ऐसी कोई ताकत नहीं है। यदि आप मुझमें श्रद्धा रखते हैं तो इस बातको सत्य मानिये। नहीं तो झूठा आदमी आपका क्या उपकार कर सकता है?

शरणके योग्य तो एक श्रीभगवान् ही हैं, वही बल देंगे। उनसे प्रार्थना कीजिये।

(९) ध्यान नहीं होता तो श्रीभगवन्नामका जप ही करें। श्वासके साथ मन्त्रजपकी जिस प्रकारसे चेष्टा करते हैं, वह ठीक ही है। भगवान‍्की कृपा-शक्तिपर विश्वास और सावधानी रखनेसे जप ठीक हो सकता है।

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