सच्चा धन
तुम्हारा पत्र मिला, सब समाचार जाने। भैया! देखो, भगवान् सर्वत्र हैं, सब समय हैं, उनको देखो। उनकी दया सब ओर सर्वदा बरस रही है, जाओ, उसमें नहा लो! शोक, चिन्ता, विषाद, भय, निराशा और आलस्यको छोड़ दो। भगवान्की सन्निधिमें ये कहीं रह ही नहीं सकते। संसारके भोगोंमें—धन, ऐश्वर्य, स्त्री-पुत्र, मान-बड़ाई आदिके मोहमें ज्यादा मत फँसो। फँसोगे—रोना पड़ेगा। फँसे हो, इसीलिये रोते हो। इनके हानि-लाभमें शोक-हर्ष न करो। मूर्ख ही सांसारिक भोगोंके आने-जानेमें हँसते-रोते हैं। पद-पदपर भगवान्को और भगवान्की दयाको देखो। शरत्पूर्णिमाके चन्द्रमाकी चाँदनीकी तरह भगवान्की दया सर्वत्र छिटक रही है। शरीर कुछ बीमार है, दवा लेते हो सो ठीक ही है। बड़ी बीमारी तो भवरोग है। इस शरीरका रोग कदाचित् एक बार मिट भी गया तो क्या होगा। मौतके मुँहसे कदापि नहीं बच सकोगे। भवरोगका नाश करो, उस लम्बे रोगकी जड़ काट दो। फिर नित्य निरामय हो जाओगे। कोई रोग रह ही नहीं जायगा। यह मत खयाल करो कि हम बड़े पापी हैं; हमें भगवान् कैसे अपनावेंगे? उनका द्वार सबके लिये खुला है। दीनोंके लिये विशेषरूपसे! जो पूर्वकृत पापोंके लिये पछताते हैं और अपनेको पापी, अनधिकारी तथा दीन मानकर भगवान्के चरणोंमें जाते डरते हैं, भगवान् उन्हें आकर ले जाते हैं, परन्तु जो पुण्यके घमण्डमें भगवान्के द्वारपर जाकर भी ऐंठे रहते हैं, उनके लिये खुले द्वार भी बन्द हो जाते हैं। भगवान्को दैन्य प्रिय है, अभिमान नहीं! इसलिये जहाँतक बने, धनका और इज्जतका अभिमान छोड़कर सबका सम्मान करो। तुम्हारे अन्दर यह एक दोष है। तुम कभी-कभी धनके कारण अपनेको दूसरोंसे कुछ बड़ा मान लेते हो! इससे तुम्हारे पारमार्थिक पथमें बाधा आ जाती है। धन भी कोई महत्त्वकी चीज है? यह तो राक्षसोंके पास बहुत ज्यादा था। रावणके तो सोनेकी लंका थी। सच्चा धन तो श्रीभगवान्का भजन है। उसीको इकट्ठा करो। वही धन तुम्हारे काम आवेगा। संसारी ईंट-पत्थरके धनको तो जहाँतक बने, भगवान्की सेवामें लगा दो। उसे अपना मानकर क्यों फँस रहे हो। मेरी बात मानो तो नीचे लिखी सात बातोंपर विशेष ध्यान रखो—
१—किसी प्राणीसे घृणा या द्वेष न करो।
२—किसीकी निन्दा न करो।
३—धनके कारण अपनेको कभी ऊँचा मत समझो।
४—भगवान्की दयाका अनुभव करो।
५—दु:खमें उनकी दयाका विशेष अनुभव करो।
६—सुखमें उन्हें भूलो मत, और
७—सदा-सर्वदा उनके स्वरूपके चिन्तन और नामके जपका अभ्यास करो।