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वर्तमान दु:समयमें हमारा कर्तव्य

आपका लिखना सत्य है कि आजकल सभी ओर ईश्वर और धर्मपर अश्रद्धा बड़े जोरोंसे बढ़ रही है। लोगोंमें इस तरहकी भावना पैदा हो रही है कि ईश्वर और धर्मको मानना मूर्खता और परम्परागत कुसंस्कारका परिणाम है। ऐसी अवस्थामें धर्म और ईश्वरको माननेवाले लोगोंको उचित है कि वे यथासाध्य अपने कर्तव्यका पालन करें, और धर्म तथा ईश्वरके न माननेसे होनेवाले दुष्परिणामों—आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक तापोंसे देशको बचानेके लिये निम्नलिखित साधनोंका उपयोग करें।

१— सभी लोग प्रतिदिन नियमितरूपसे भगवान‍्से प्रार्थना करें।

२— सभी लोग प्रतिदिन भगवान‍्के नामका जाप करें। विश्वासपूर्वक की जानेवाली भगवान‍्की प्रार्थना और उनके नामजपसे सारे पाप-ताप नष्ट हो सकते हैं, यह निश्चित है।

३— धनी लोग प्रार्थना और जापके अतिरिक्त खुले हाथों धर्मकी रक्षाके लिये दान करें। देखा जाय तो बहुत-से धनी तो दान करते ही नहीं; जो करते हैं वे नामके लिये प्राय: ऐसे ही कामोंमें दान करते हैं जिनसे उलटे अधर्मकी वृद्धि और धर्मपर कुठाराघात ही होता है। धनियोंको इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिये। अधार्मिक भावना विशेषरूपसे फैल गयी तो उन्हें भी बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा।

४— मठाधीशों, महन्तों, गुरुओं और आचार्यों आदिको त्यागी, सच्चरित्र और विद्वान् बनना चाहिये। वे अपनेको धर्मका रक्षक मानते हैं और जब उनके ही चरित्र आदर्श न हों, कलंकपूर्ण हों तो लोगोंमें धर्म और ईश्वरपर श्रद्धा कैसे रह सकती है। गुरुवर्ग सदाचारी, पूर्णत्यागी, ईश्वरनिष्ठ, धर्मपरायण और विद्वान् हो जाय तो धर्मकी रक्षा बहुत आसानीसे हो सकती है।

५— स्त्रियोंको पतिपरायणा होना चाहिये और नयी लहरमें न बहकर सतीत्व-धर्मका आदर्श कायम रखना चाहिये।

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