Hindu text bookगीता गंगा
होम > परम सेवा > भगवान् के ध्यानके लिये प्रेरणा

भगवान् के ध्यानके लिये प्रेरणा

प्रवचन—दिनांक-२८-१२-१९६३, गोविन्द भवन, कोलकाता

भगवान् के जितने अवतार हुए हैं, उनमें भगवान् श्रीराम और भगवान् श्रीकृष्णके अवतार प्रधान हैं। ध्यानके पूर्व आसनकी आवश्यकता है। आसनके लिये भगवान् ने बताया है—

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मन:।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्॥
(गीता ६। ११)

शुद्ध भूमिमें, जिसके ऊपर क्रमश: कुशा, मृगछाला और वस्त्र बिछाये हैं, जो न बहुत ऊँचा है और न बहुत नीचा, ऐसे अपने आसनको स्थिर स्थापन करके बैठे।

इससे पवित्र स्थान और क्या होगा? एकान्त देश और उसपर गंगाजीकी रेणुका बड़ी पवित्र है। कुशा, मृगछाला और वस्त्र तीनों मिलाकर आसन बनाया जाय, वह भी गंगाजीकी रेणुकासे बढ़कर नहीं हो सकता। प्रश्न उठता है कि भगवान् ने गंगाजीकी रेणुकाका ही आसन क्यों नहीं बताया? बात यह है कि यह सबके लिये सुगम नहीं है। यह रेणुकाका आसन बड़ा पवित्र है, इसमें सादगी है तथा यहाँके परमाणुओंमें ध्यान लगानेकी शक्ति है। अब आसन जमाना चाहिये ‘समं कायशिरोग्रीवं’ (गीता ६। १३) काया, सिर और ग्रीवाको समान रखें। मेरुदण्ड सीधा रखें, जिससे निद्रा नहीं आये और नासिकाके अग्रभागमें दृष्टि केन्द्रित करें। निद्रा, आलस्य नहीं आये तो नेत्र बन्द कर सकते हैं।

प्रश्न—भगवान् के स्वरूपका ध्यान बाहरमें करे या हृदयमें?

उत्तर—जैसा आपको सुगम पडे़।

प्रश्न—साकारका करें या निराकारका?

उत्तर—निराकारके सहित ही साकारका करें। जैसे—आकाशमें पूर्णिमाका चन्द्रमा है। आकाशकी तरह परमात्माका निराकार स्वरूप है और चन्द्रमाकी तरह साकार स्वरूप है। हृदय आकाशमें ध्यान करो, चाहे ब्रह्म आकाशमें। साकार, निराकार एक ही है। दो वस्तु नहीं है। एक ही के दो भेद हैं। ऐसे परमात्माके स्वरूपका ध्यान करे। भगवान् के मुखारविन्दकी उपमा चन्द्रमाकी दी जाती है।

प्रश्न—सगुण-साकारमें भगवान् विष्णुका ध्यान करे या रामका?

उत्तर—जिसमें आपकी रुचि हो, वही आपके लिये अधिक लाभदायक है।

चन्द्रमाकी उपमा तो है ही, भगवान् के नाममें भी चन्द्र जोड़ दिया है। जैसे—श्रीरामचन्द्र, श्रीकृष्णचन्द्र। श्रीकृष्णदास नहीं जोड़ा है।

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....

अगला लेख  > ध्यानावस्थामें प्रभुसे वार्तालाप