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भगवान् के ध्यानमें मृत्यु हो तो आनन्द-ही आनन्द है

प्रवचन-तिथि—वैशाख कृष्ण ३, संवत् १९९८, सोमवार, दिनांक १४-४-१९४१ प्रात:काल, वटवृक्ष, स्वर्गाश्रम

प्रश्न—शान्ति किसके मनमें होती है?

उत्तर—जिसके विक्षेपोंका नाश हो गया है। विक्षेपोंके अभावसे चित्तमें निर्मलता होती है, उसीको शान्ति मिलती है। अत: सारी इच्छाओंका त्याग करना चाहिये और किसी भी वस्तुकी इच्छा नहीं करनी चाहिये। आत्मा ही महात्मा है। अपनी आत्मासे पूछे कि क्या चाहते हो? उत्तर मिले—कुछ नहीं। ऐसे अवस्थामें मृत्यु हो जाय तो बस कल्याण है। मृत्युको निमन्त्रण दे। एक दिन मृत्यु होगी ही, परमात्माके ध्यानमें मृत्यु हो तो आनन्द-ही-आनन्द है।

प्रश्न—मरनेवाला संसारका चिन्तन कर रहा है, दूसरा व्यक्ति उसको भगवन्नाम सुना रहा है, क्या उसका कल्याण हो जायगा?

उत्तर—भगवान् ने मनुष्यको अन्तकालमें विशेष छूट दी है। अन्तकालमें भगवन्नाम सुनानेसे वहाँ यमदूत नहीं आयेंगे। दूसरी बात, नाम सुनानेवालेका उद्देश्य कल्याण करनेका है तो नाम सुनानेसे उसका कल्याण हो जायगा।

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....

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