भगवान् के ध्यानरूपी रस्सेको न छोडे़ं
प्रवचन—वैशाख कृष्ण ११, संवत् १९९३ सन् १९३६, सायंकाल, टीबड़ी, स्वर्गाश्रम
और कोई साधन बने या न बने भगवान् का ध्यान न छोड़ें। भगवान् का ध्यान सब विघ्नोंको नष्ट कर देता है। ध्यान बाहर-भीतरके सभी विघ्नोंका नाश कर देता है—यह निश्चय कर लें। अन्त-समयमें जिसका ध्यान हो जाता है वह वही बन जाता है, अत: अन्त-समयमें भगवान् को याद करनेके लिये पहलेसे ही अभ्यास करें। भगवन्नामका जप खूब करें। ध्यानसे प्रसन्नता और शान्ति रहती है। जपके समय दुराचार, काम, क्रोधादि पास नहीं आते।
ध्यान भक्तिका प्रधान अंग है। भगवान् कहते हैं—जो निरन्तर मुझे याद रखता है, उसका योगक्षेम मैं वहन करता हूँ। शास्त्र कहते हैं धूलके कणोंकी गिनती हो सकती है पर यह जीव कितनी बार जन्म लेगा इसकी गिनती नहीं हो सकती। यह जीव कितनी बार इन्द्र और ब्रह्मा हो गया इसका पता नहीं। संसार समुद्रमें डूबतेके लिये भगवान् का ध्यान आधार है। इस ध्यानरूपी रस्सेको न छोड़ें। फिर क्या पता ऐसा मौका हाथ लगे या न लगे यानी मनुष्य शरीर वापस मिले या न मिले। ध्यानके लिये जरूरी-से-जरूरी काम छोड़ दें, पर ध्यानको न छोड़ें। ऐसा अवसर दूसरे जन्ममें मिले यह भरोसा नहीं रखना चाहिये। क्या पता दूसरे जन्ममें क्या बनेंगे। इसलिये सब काम छोड़कर इस कामको करें।
जो सिर साटे हरि मिलै तौ पुनि लीजै दौर।
क्या जाने इस देरमें ग्राहक आवे और॥