भगवान् की इच्छामें अपनी इच्छा मिला दें
प्रवचन—दिनांक १५-१२-१९५९, रामधाम, चित्रकूट
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सांसारिक सुखके भोगकालमें सुखकी प्रतीति होती है परन्तु परिणाममें वह बहुत दु:ख देनेवाला है।
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दूसरेकी किसी प्रकारकी उन्नति देखकर मनमें जो दु:ख होता है यह संताप है।
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पहले जो आदमी सुख भोग लेता है, उसे यदि दु:खका अवसर प्राप्त होता है तो वह रात-दिन रोता है।
प्रश्न—भगवान् को अच्छा समझकर भी भगवान् का ध्यान नहीं लगता, इसमें क्या कारण है?
उत्तर—श्रद्धाकी कमी या विश्वासकी कमी है और कोई कारण समझमें नहीं आता। भगवान् पर विश्वास करके या गीताजीपर विश्वास करके भगवान् में प्रेम करना चाहिये।
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सत्पुरुषोंका संग, सत्संग और शास्त्रोंके पढ़नेसे, भगवान् में प्रेम होनेसे, भोगोंमें दु:खका अनुभव करनेसे भी संसारसे वैराग्य हो सकता है।
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संसारमें भगवान् के समान कोई है ही नहीं, यह विश्वास हो जाय तो भगवान् में प्रेम हो जाय। भगवान् प्रेमका जितना मूल्य देते हैं उतना कोई नहीं देता। भगवान् में गुणोंका पार ही नहीं है। उनके सौन्दर्य, गुण, प्रभाव, दया, सुहृदता आदि गुणोंको देखें तो और कहीं इतने नहीं मिलेंगे। यदि यह विश्वास हो जाय तो भगवान् में प्रेम हो जाय।
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भगवान् का व्यवहार भी अद्भुत है। उनके व्यवहारसे शत्रुओंको भी आश्चर्य होता था।
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हमें यह विश्वास हो जाय, निश्चय हो जाय कि भगवान् के सिवाय हमारा कोई हितैषी नहीं है तो भगवान् से प्रेम हो जाय।
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भगवान् के नाम-जपसे या ध्यानसे भी भगवान् में प्रेम हो जाता है। सत्संगसे भी भगवान् में प्रेम होता है।
बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग।
मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग॥
(रा०च०मा०, उत्तरकाण्ड ६१) -
भगवान् में जितनी सुख-शान्ति है उतनी और किसीमें भी नहीं है, यदि यह विश्वास हो जाय तो भगवान् में प्रेम हो जाय।
मैंने तो सारी बात भगवान् पर छोड़ रखी है, जो होवे उसीमें आनन्द है। अपनी इच्छा मिटा दे और भगवान् की इच्छामें इच्छा मिला दे तो अपना कल्याण हुआ ही पड़ा है। अपनी इच्छा रखी तो बहुत तकलीफ पाया। भगवान् की इच्छामें इच्छा मिला देनेपर हमें कुछ करना ही नहीं है, जो होता है उसीमें आनन्द है।
सुखदेवजीने* एकान्तमें कहा कि मेरेमें कोई कमी हो तो दूर करें।
* गीताप्रेसके ट्रस्टी श्रीसुखदेवजी अग्रवालने सेठजीके सान्निध्यमें चित्रकूटमें शरीर-त्याग किया था।
उत्तर—यह समझो कि भगवान् के परम-धाममें जा रहा हूँ, मुझे कुछ करना नहीं है। यह निश्चय कर लो कि मेरे कल्याणमें शंका नहीं है।
आपलोगोंके लिये यह बात है कि मरनेवालेको आश्वासन देवें कि तुम्हारा कल्याण निश्चित है। भगवन्नाम-जप, कीर्तन करते हुए या सुनते हुए जिसका शरीर छूटता है उसका कल्याण निश्चित है।
जीनेवालोंके लिये यह बात है कि खूब भजन-ध्यान करें, गीता और महात्माकी बात मानें तो उनके कल्याणमें कोई शंका नहीं है।
किसी व्यक्तिके शवको यदि महात्मा देख लें तो वह जिस लोकमें गया हुआ होता है, वहाँसे सीधे भगवान् के यहाँ चला जाता है।
मरनेवालेको होश रहे तबतक भक्तिकी, ज्ञानकी बातें सुनायें, जब होश नहीं रहे तब कीर्तन सुनायें।
प्रश्न—सांसारिक काम करते हुए भगवान् का विस्मरण क्यों हो जाता है?
उत्तर—इस संसारको स्वप्नवत् मान लेनेपर उसमें आसक्ति नहीं रहेगी। भक्तिके मार्गमें भगवान् की लीला समझ लेवें। इस संसारके शरीर, रुपया, स्त्री-पुत्र आदिमें जो आसक्ति है वही पतनका मुख्य कारण है, इसको हटाना चाहिये।
विषयोंका ध्यान अर्थात् चिन्तन बहुत हानिकारक है, इसी तरह भगवान् का चिन्तन होने लग जाय तो बहुत लाभकारक है।
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण.....