भगवान् की प्राप्ति २४ घण्टेमें हो सकती है
ध्यानके समय परमात्माके सिवाय और किसी चीजका चिन्तन नहीं करे। भगवान् से प्रार्थना करे कि प्रभु आप आनेमें क्यों विलम्ब कर रहे हैं। आप तो दीन-बन्धु हैं और मैं दीन हूँ, आप अपने दासोंके दोषोंको देखते नहीं, यदि आप मेरे दोषोंकी ओर देखें तो मेरा कहीं टिकाव नहीं है। करुणा-भावसे भगवान् को पुकारे हे नाथ! हे हरि!! करुणा-भावसे पुकारनेसे भगवान् विशेष रूपसे सुनते हैं।
यह विश्वास रखे कि भगवान् आह्वान करनेसे आ जाते हैं। भगवान् अपनी विशेष कृपाके प्रभावसे ही दर्शन दे सकते हैं, भगवान् की कृपा है ही। भगवान् का ध्यान करनेमें मनुष्य स्वतन्त्र है।
भगवान् के कीर्तनके प्रभावसे वातावरण शुद्ध हो जाता है और सब विघ्न-बाधा भाग जाती है।
शरीरका सुख तथा आसक्ति परमात्माकी प्राप्तिमें महान् विघ्न हैं। परमात्मामें आसक्ति करनी चाहिये, वैसा सुख और कहीं नहीं है। संसारकी आसक्ति भय देनेवाली और जन्म-मरण देनेवाली है। इस संसारकी आसक्तिको विवेक विचारसे हटावें। जप, ध्यान, सत्-शास्त्रोंका अध्ययन और सत्संग—ये मूल्यवान् साधन हैं।
दुखियोंकी निष्काम भावसे सेवा, मन इन्द्रियोंका संयम, संसारसे वैराग्य—साधनमें ये सब होना अत्यन्त आवश्यक है। वैराग्य होनेसे मन इन्द्रियोंका संयम अपने आप हो जाता है।
अंत समयमें भगवान् की याद कम रहती है। यह युवावस्थाकी लापरवाही का परिणाम है।
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित:॥
(गीता ८। ६)
हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! यह मनुष्य अन्तकालमें जिस-जिस भी भावको स्मरण करता हुआ शरीरका त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है; क्योंकि वह सदा उसी भावसे भावित रहा है।
सदा जिस भावका चिन्तन करता है अन्तकालमें भी प्राय: उसीका स्मरण होता है। इसलिये भगवान् कहते हैं—
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
(गीता ८। ७)।
सब समय मुझे याद रखते हुए युद्ध कर, अर्थात् मुझे याद रखते हुए काम कर।
एक कहानी याद आ गयी। एक सेठको एक महात्माने कहा कि भगवान् का भजन किया कर, सेठने कहा फुरसत नहीं है। महात्माके कहनेसे सेठने नहानेके समय भगवान् को याद करनेका नियम लिया, मरते समय उसको स्नान कराया गया तो उसको भगवान् याद आ गये और उसका कल्याण हो गया। इसलिये भगवान् को हर समय याद रखना चाहिये। इसमें परिश्रम नहीं है और कुछ खर्च भी नहीं होता है। वह नहानेका समय काममें आ गया, भगवत्स्मृतिसे बढ़कर और कुछ है ही नहीं।
विशेष बात यह है कि मरते समय घरमें कुत्ता, कौआ आदि कोई भी पशु-पक्षी शब्द करते हों तो उन्हें वहाँसे हटा देना चाहिये। मरनेवालेसे कुछ भी सांसारिक बात नहीं कहना चाहिये। यदि उसका ध्यान परमात्मामें लगा हुआ होगा और हमने संसारकी बात चला दी तो उसका पुनर्जन्म होना सम्भव है। मरनेवालेको भगवान् की याद दिलानी चाहिये, उससे संसारकी कोई बात नहीं करनी चाहिये।
मनुष्य कैसा भी पापी क्यों न हो, उसे मृत्युके समयमें भगवान् का स्मरण हो जाय तो निश्चय ही उसका कल्याण होगा, इसमें सन्देह नहीं है।
भगवान् की प्राप्ति चौबीस घण्टेमें हो सकती है। इसके लिये पाँच चीजका त्याग करना आवश्यक है—आहार, जल, नींद, टट्टी और पेशाब एवं दो चीजका ग्रहण करना आवश्यक है—भगवन्नाम-जप और भगवान् का ध्यान।
पक्षी तथा जानवरोंकी बोलीमें मरते समय मन चला जाय तो उसका एक जन्म अवश्य होगा, इसलिये किसीके मरनेके समय पक्षी तथा जानवरोंका शब्द सुनायी नहीं पड़ना चाहिये।
यदि मृत्युके समय कुत्तेकी आवाज सुनायी दे तो मरनेवाला भी कुत्ता होता है। चाहे मरनेवाला कैसा ही उच्चकोटिका साधक क्यों न हो। इसलिये सावधानी रखे एवं अन्त समयमें उसे भगवान् की स्मृति रहे, ऐसी चेष्टा रखनी चाहिये।
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....