भगवन्नाम सुनाना सर्वश्रेष्ठ कार्य
(ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदासजी महाराज)
प्रवचन—दिनांक-१०-८-२००२, अपराह्न ३.३० बजे, गीताभवन, स्वर्गाश्रम
प्रश्न—परम-सेवाके बारेमें जानकारी चाहते हैं। सेठजीने परम-सेवाके लिये बहुत कुछ कहा था और मरणासन्न व्यक्तिको नाम सुनानेमें बहुत उत्साहकी बात बताते थे। आपके श्रीमुखसे भी लोगोंको परम-सेवाके विषयमें जानकारी मिल जाय ऐसा निवेदन है।
उत्तर—कोई मर रहा हो, सेठजी सत्संग छोड़कर भी वहाँ जाते और सेठजीने कहा भी है कि सब काम छोड़कर उसको नाम सुनाओ। वह सदाके लिये जा रहा है, पहले उसको भगवन्नाम सुनाओ, सत्संग छोड़ दो, उसके लिये सब काम छोड़ दो। उसको भगवन्नाम सुनाओ, ऐसा सेठजी कहते थे।
सेठजीने कोलकातामें परम सेवा समिति बनायी है। उस समितिके लोग जाते हैं, जहाँ कोई बीमार हो उसकी सेवा करते हैं, वहाँ नाम सुनाते हैं, कीर्तन सुनाते हैं, दो-दो घण्टेकी पारी बँधी हुई है। अपने यहाँ भी आपलोग पारी बाँध लो, भाइयोंके लिये भाई, कोई बहन बीमार हो तो बहनोंको अपनी पारी बाँध लेनी चाहिये, दो-दो घण्टे उसके पास जाकर कीर्तन सुनाओ, नाम सुनाओ, सेवा करो। बीमारकी सेवाका बड़ा माहात्म्य है, वह भगवान् की सेवा है, भगवान् सेवा चाहते हैं, इसलिये भगवान् की सेवा करो।
प्रश्न—वह सुनना नहीं चाहे तो?
स्वामीजी—उसकी रुचि पैदा करो।
प्रश्न—यदि वह कहे जोरसे मत बोलो, धीरे-धीरे बोलो।
स्वामीजी—धीरे-धीरे बोलो। पर उसे नाम सुनाओ।
प्रश्न—मरणासन्न व्यक्ति तो सुनना चाहता है, परन्तु उसके घरवाले, पासवाले लोग मना करते हों तब क्या करें?
स्वामीजी—वे मना करते रहें, पर आप अवश्य सुनाओ। सुननेवाला चाहता है तो अवश्य सुनाओ।
प्रश्न—उस समय घरवालोंकी बात नहीं सुननी चाहिये?
स्वामीजी—नहीं सुननी चाहिये। कोई बुराई करे तो सुन लो, पर उसे कुछ बोलो मत। उसे नाम सुनाओ, कीर्तन सुनाओ, घरवालोंकी बात मत सुनो, मरनेवालेकी रुचि है तो अवश्य सुनाओ। सुनना चाहे तो बड़े उत्साहसे सुनाओ। घरवाले तिरस्कार करें, अपमान करें, सब सह लो। चुप हो जाओ, बोलो मत। पर उसे नाम सुनाओ। कोई कहे कि तुम यह क्या करते हो? कहो भई! यह भगवन्नाम सुनना चाहता है, इसलिये भगवन्नाम सुनाते हैं।
श्रोता—कोई डॉक्टर कह दे कि हल्ला क्यों करते हो? लेकिन उसकी इच्छा है सुननेकी तो डॉक्टरकी परवाह नहीं करनी चाहिये?
स्वामीजी—डॉक्टर खड़ा रहे तब धीरे-धीरे बोलो। डॉक्टर चला जाय फिर चिल्लाओ। मेरे काम पड़ा है, कोलकातामें गोपालदासजीकी माँ थी, बुलानेपर मैं तुरन्त गया। मैंने सुना—कोई कह रहा था पुलिसवाला नहीं है, नहीं तो पकड़ेगा इनको, बीमारके पासमें हल्ला करता है। मेरे असर पड़ा कि ये लोग भगवान् की बात सुनना नहीं चाहते। मैं चुप हो गया वे चले गये, फिर मैंने उसको भगवन्नाम सुनाया, मरनेवाला सुनना चाहे तो सुनाओ, अवश्य सुनाओ। यह बढ़िया बात है, एक-दो व्यक्तिको सुना दे तो उसे अन्तमें भगवान् की स्मृति आयेगी।
श्रोता—सुनानेवालेको भी?
स्वामीजी—हाँ! इसमें बहुत भारी पुण्य है, मरणासन्नको भगवान् की याद दिलाना बहुत बड़ा पुण्य है, वह तो संसारसे जा रहा है। सेठजी तो सत्संग छोड़कर जाते थे।
श्रोता—महाराजजी! वह व्यक्ति सत्संगी है, लेकिन अन्तिम अवस्थामें उसकी बुद्धिमें कोई विकृति आ गयी, उसपर बीमारी ज्यादा प्रभावी हो गयी, उस समय यदि वह बुद्धिकी खराबीसे मना करता है। अब उसे भगवन्नाम सुनायें या नहीं?
स्वामीजी—पासमें बैठे-बैठे राम राम राम राम.... करते रहो, भजन करते रहो, उसका भी असर पड़ता है। हम तो उसका कल्याण चाहते हैं। अब वह नहीं सुने तो कोई क्या करे? उसे भगवन्नाम सुना दो, हमें तो उसे किसी तरह भगवान् में लगाना है।
श्रोता—महाराजजी! मरणासन्न व्यक्तिने तो मना कर दिया, लेकिन पासमें सत्संगी लोग बैठे हैं, कुछ लोग राम राम कर रहे हैं, उसको नहीं सुना रहे हैं। उससे भी उसको लाभ होगा क्या?
स्वामीजी—हाँ! लाभ होगा, अवश्य होगा। वहाँ यमदूत नहीं आते। जहाँ नाम-जप हो रहा है, वहाँ यमदूत नहीं आते। अजामिलके अन्त समयमें नारायण नामके उच्चारणसे पासमें खड़े यमदूतोंको भगवान् के पार्षदोंसे मार खानी पड़ी, इसलिये यमके दूत वहाँ नहीं आते। बहुत उत्साहसे सुनाओ।
श्रोता—महाराजजी! कोई सत्संगी व्यक्ति अपने परिवारवालोंको या अपने मित्रोंको यह कह दे कि देखो! अभी मैं जो आपको कह रहा हूँ वह स्वस्थ चित्तसे कह रहा हूँ कि बीमार अवस्थामें मेरी बुद्धि खराब हो जाय और मैं मना भी कर दूँ तो भी आप नाम सुनाते रहना, उसको सुनाते रहना चाहिये?
स्वामीजी—हाँ! उसकी नीयत ठीक है। नामपर श्रद्धा है, प्रेम है, उसको अवश्य सुनाओ।
श्रोता—महाराजजी! यहाँ कभी-कभी ऐसी दुर्घटना हो जाती है कि रात भर उस मृत व्यक्तिको रखना पड़ता है, वहाँ नाम सुनानेवालोंका उत्साह नहीं देखा जाता कि वहाँपर खूब लोग जायें और उस मृत व्यक्तिको नाम सुनावें, ऐसा उत्साह नहीं दिखायी देता है।
स्वामीजी—उत्साह रखना चाहिये, भाई लोगोंको उत्साह रखना चाहिये। उसको नाम अवश्य सुनाना चाहिये। सेठजीके समयके सत्संगी मोहनलालजी पटवारी थे, वह कहते थे—‘भगवन्नाम सुनानेके लिये जब रात्रिमें कोई नहीं रहे, वह समय हमारा रखो। दूसरा कोई रात्रिके समय सुनाना नहीं चाहे तो हम सुनाएँगे। जिस समय नाम सुनानेके लिये दूसरा कोई नहीं हो वह समय हमें बताओ।’ उनके ऐसा उत्साह था। पहले मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम सुनानेकी बात बहुत अधिक थी, आजकल लोगोंमें वैसी बात नहीं रही। स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराजने कहा कि यहाँ गीताभवन, स्वर्गाश्रममें मरनेका भी प्रबन्ध है और सेठजीकी बातोंका भी (सत्संगका) प्रबन्ध है। मरणासन्न व्यक्तिको भगवान् का नाम सुनाते हैं, ऐसा प्रबन्ध हरेक जगह नहीं होता कि मरनेवालोंके लिये भी प्रबन्ध हो।
अपने तो लगो और लगाओ, भगवान् में लगो और लोगोंको लगाओ, समय और कहीं मत लगाओ, केवल भगवान् में समय लगाओ।
शतं विहाय भोक्तव्यं सहस्रं स्नानमाचरेत्।
लक्षं विहाय दातव्यं कोटिं त्यक्त्वा हरिं स्मरेत्॥
सौ काम छोड़कर भोजन करें, हजार काम छोड़कर स्नान करें, लाख काम छोड़कर दान करें, करोड़ों काम छोड़कर भगवान् का स्मरण करें।
मरणासन्न व्यक्तिको भगवान् का स्मरण कराओ, करोड़ काम बिगड़ता हो तो बिगड़ जाय, पर उसे नाम सुनाओ। यह सबसे श्रेष्ठ है। और कुछ बिगड़ता हो तो बिगड़ने दो, कोई परवाह मत करो। हरिस्मृति: सर्वविपद्विमोक्षणम् भगवान् की स्मृति सब विपत्तियोंका नाश करनेवाली है। इसलिये व्यक्तिको भगवान् की स्मृति कराओ नष्टो मोह: स्मृतिर्लब्धा (गीता १८। ७३) अब स्मृति आ गयी। भगवान् की कृपासे स्मृति पैदा हो जाती है। भगवान् की कृपासे भगवान् की याद आती है।
यह गुन साधन तें नहिं होई।
तुम्हरी कृपाँ पाव कोइ कोई॥
(रा०च०मा०, किष्किन्धा० २१। ६)
किसी तरहसे भी भगवान् में लगो और लगाओ।
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....