भगवन्नामकी तुलना ही नहीं
(ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदासजी महाराज)
प्रवचन—दिनांक-३-१०-१९९६, अपराह्न ३.३० बजे, फोगला आश्रम, वृन्दावन
भगवन्नाम बहुत विलक्षण है, इसकी महिमा अपार और असीम है। भगवान् और भगवान् का नाम इन दोनोंका विवेचन गोस्वामीजी महाराजने नाम-वन्दनाके प्रकरणमें नौ दोहोंमें बड़े अद्भुत ढंगसे कहा है। उसमें यहाँतक कह दिया है कि नाम रामजीसे भी अधिक है। रामचरितमानसमें बहुत विस्तारसे कहा है—
राम एक तापस तिय तारी।
नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥
(रा०च०मा०, बाल० २४। ३)
रामजीने एक तपस्वीकी स्त्रीका उद्धार किया, तपस्वीकी स्त्री तपस्वीका ही आधा अंग है, यानी तपस्वीकी स्त्री तो पवित्र होती है, वह पतित थोड़े ही थी। नामने करोड़ों खल, दुष्ट, पापियोंकी कुमति सुधारी, कुबुद्धि सुधर गयी, उनकी बुद्धि सुधर गयी। फिर गोस्वामीजीने कहते-कहते यहाँतक कह दिया—
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥
(रा०च०मा०, बाल० २६। ४)
नामके गुण कहाँतक गाऊँ, रामजी भी अपने नामका गुण नहीं गा सकते। भगवान् की सामर्थ्य भी नामकी महिमामें खत्म हो जाती है, भगवान् अनन्त हैं और भगवान् का नाम भी अनन्त है, अनन्तका अन्त कैसे कर दें? नामकी महिमा अनन्त है। आपने अजामिल उपाख्यान सुना है, उसमें परीक्षित् घबराये कि नरकोंका इतना दु:ख कैसे टलेगा? दु:ख भगवन्नामसे टलेगा। सज्जनो! भगवान् के नामकी महिमा सुनते ही भगवन्नाममें ही लग जायँ, जो सुनकर भगवन्नाममें लग जाय उसने भगवन्नामकी महिमा सुनी, नहीं तो सुनी ही कहाँ?
जैसे हम सरकारको कोई शिकायत करते हैं और उस शिकायतके अनुसार कार्यवाही नहीं होती है तो हम कहते हैं कि सुनवायी नहीं हुई। इसी तरह जो भगवान् के नामकी महिमा सुनकर फिर भी तत्परतासे भगवन्नाममें नहीं लगते हैं। उन्होंने नामकी महिमा सुनी नहीं, उनके यहाँ सुनवायी नहीं हुई। नामकी महिमाका साक्षात्कार नाम-जप करनेसे होता है, सुननेसे साधारण रुचि हो जाती है, परन्तु नाम लेनेसे जो उसका अनुभव होता है वह केवल सुननेसे नहीं होता। बस सुनकर भगवन्नाममें लग जाय। जैसे लड्डू देखनेमें अच्छा लगता है, पर खानेमें जैसा लगता है वैसा देखनेमें थोड़े ही लगता है। इसी तरह नाम लेनेसे नामका पता लगता है।
एक संस्कृतका ग्रन्थ है—भगवन्नाम कौमुदी। उसमें नामकी महिमा गायी है। उसमें यह विशेष अवसर है कि कोई आफतमें आ जाय, मृत्यु आ जाय उस समय नाम लिया जाय, ऐसी आफत जिससे छुटकारा मिलना मुश्किल हो, उस समय नाम लिया जाय, उस समय लिये हुए नामका मूल्य बहुत अधिक है; क्योंकि उस समय सब ओरसे वृत्तियाँ इकट्ठी हो जाती हैं, रुक जाती हैं और उसका कोई सहारा नहीं होता। अजामिलके कोई सहारा नहीं, उसके पासमें रक्षाका कोई उपाय नहीं, ऐसे असहाय होकर उसने नारायण कहकर बेटेको पुकारा। अजामिलकी बात ऐसी सुनी है कि कान्यकुब्जनगरमें संत आये थे (कान्यकुब्ज नगरको आजकल कन्नौज कहते हैं)। वहाँ बैठे कुछ लोगोंसे संतने पूछा, भाई! इस गाँवमें कोई अच्छा भाव-भक्तिवाला घर है? जहाँ हम रात्रिमें निवास कर सकें? लोगोंने उनके साथ दिल्लगी की कि हमारे यहाँ अजामिल बड़ा भक्त है। संत सरल थे, उनकी बात मानकर अजामिलकी प्रतीक्षामें उसके घरके बाहर बैठ गये, अजामिल आया और उनसे पूछा महाराज! कैसे आये? संतने कहा—भाई! तेरा नाम सुनकर आये हैं। यहाँ कुछ लोग बैठे थे, उन्होंने कहा कि अजामिल बड़ा भक्त है, इसलिये हम तेरा नाम सुनकर आ गये।
अजामिलने सोचा महाराज धोखेमें आ गये। उसने साफ कह दिया कि महाराज! मैं हूँ तो ब्राह्मण, पर मेरा खान-पान सब भ्रष्ट है। मैं पतित हूँ, आज आप आ गये, हमारा भोजन करें। महाराजने कहा—भाई हम तुम्हारा भोजन नहीं करेंगे। ऐसे पतितका अन्न खानेसे हम स्वयं पतित हो जायँगे, इसलिये नहीं खायेंगे। अजामिलने उनसे अनुनय-विनय की कि किसी तरहसे आप हमारी बात मान लें। मैं आपके भोजनका पवित्रताके साथ दूसरी जगह प्रबन्ध कर दूँ? संतने कहा—तुम हमारी बात मानो तो हम तुम्हारी बात मान सकते हैं। अजामिलने कहा बात मानूँगा, पर यह बात जो आप कहते हैं कि भजन करो, यह मेरेसे नहीं होगा। मुझे काम-धन्धा बहुत रहता है, मुझे समय नहीं मिलता है। आप कह दें कि माला लेकर बैठ जाओ, यह मेरेसे नहीं होगा, हम गृहस्थ हैं हमारे बाल-बच्चे हैं। उनका पालन-पोषण करना पड़ता है। संतने कहा—तुम ऐसा करो कि अब जो तुम्हारे बालक होगा उसका नाम नारायण रख देना। उसने यह बात स्वीकार कर ली। सन्तकी कृपासे रखा हुआ नारायण नाम उसके लड़केका था। सन्तके हृदयमें उसका उद्धार करनेका भाव था और उद्धार भगवन्नामसे हो जायगा। छोटे बच्चेमें माँ-बापका, स्नेह अधिक होता है, इसलिये यह स्नेहसे नाम लेगा। मृत्युके समय अजामिलके कोई सहारा नहीं, कोई सहायक नहीं, कोई रक्षक नहीं था। केवल बच्चेका नाम लिया, नारायण! नारायण! नारायण। चार अक्षरका नाम था चार पार्षद आ गये। मृत्युके समय लिये गये भगवन्नामका विशेष माहात्म्य होता है। सब ओरसे निराश होकर एक बार भगवान् का नाम लिया जाय तो बेड़ा पार है।
जब लग गज अपनो बल बरत्यो नेक सरॺो नहिं काम।
निर्बल ह्वै बल राम पुकारॺो आयो आधे नाम॥
राम कहते ही सब ओरसे वृत्तियाँ हटकर एक भगवान् में लग गयीं। एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास। अनन्य भावसे गजके ऐसा भाव हो गया।
अजामिलके मनमें दृष्टि पुत्रकी है, परन्तु रक्षा नारायण करेंगे, उसने नारायणका नाम अन्तकालमें लिया। अन्तकालमें छूट होती है। मनुष्यको मानव-शरीर मिलता है, केवल अपना उद्धार करनेके लिये। एहि तन कर फल बिषय न भाई। मनुष्य-शरीर उद्धार करनेके लिये मिलता है, इसलिये जीवन भर भगवान् का भजन करो। परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही लग जाओ। धन कमानेके लिये और भोग भोगनेके लिये यह शरीर नहीं है। यह शरीर परमात्मा प्राप्तिके लिये है। चौरासी लाख योनियोंमें एक मनुष्य-शरीर ही ऐसा है जो भगवान् की प्राप्तिका अधिकारी है। वह अधिकार देवता आदिको भी नहीं है जो मनुष्यको है। ऐसे शरीरको पाकर भजनमें लग जाना अच्छा है। ‘अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्’ यह अनित्य है, इसमें सुख नहीं है, इस मनुष्य-शरीरको पाकर मेरा भजन कर। इसके लिये ही मनुष्य-शरीर है, अत: रात-दिन हर समय भगवान् में लग जायँ। अजामिलने जब भगवान् के पार्षदोंसे भगवन्नामकी महिमा सुनी तो बच्चों, स्त्री और घरको छोड़कर हरिद्वार चला गया और जाकर भगवन्नाममें ही लग गया। सुननेका असर इसको कहते हैं। ऐसा करनेपर फिर भगवान् दुर्लभ थोड़े ही हैं। नाम उच्चारण मात्रसे दूत भाग गये, मैंने ऐसी बातें और भी सुनी हैं, अभी जीवित अवस्थामें ये घटनाएँ घटी हैं। किसीको यमराजके दूत लेनेके लिये आये, उसने घबराकर भगवान् का नाम लिया और दूत भाग गये। जिसने भी यमदूतोंको देखा और भगवान् का नाम लिया तो दूत भाग गये। नाम लेनेसे लाभ होता है। भगवान् के नामसे जिनका उद्धार हुआ है, ऐसे लोग आपके सैकड़ों ही मिल सकते हैं।
चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ।
कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ॥
कलियुगमें नामकी महिमा विशेष है। सत्ययुग आदिमें दूसरे साधन भी हैं, पर कलियुगमें दूसरा उपाय नहीं है। चैतन्य महाप्रभुने कहा है—नाम्नामकारि बहुधा निजसर्वशक्ति: तत्रार्पिता नियमित: स्मरणे न काल:। कलियुग आते ही भगवान् ने अपनी पूरी शक्ति नाममें रख दी, नाम-स्मरणमें नियम नहीं रखा कि सुबह करें, दोपहरमें करें, शामको करें, रात्रिको करें, दिनमें करें, कभी भी करें। आठों पहरमें नाम हर समय हर-एकके लिये खुला है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री, पुरुष, पढ़ा-अनपढ़, हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई कोई भी हो।
भगवन्नाम भाव एवं ध्यानसहित लिया जाय तो बहुत महत्त्वपूर्ण है।
गुप्त अकाम निरन्तर ध्यानसहित सानन्द।
आदरयुक्त सबसे तुरत पाये परमानन्द॥
छ: बातें साथ होती हैं तो बहुत शीघ्र लाभ होता है, विशेष लाभ होता है। नाम लिया जाय उसको प्रकट नहीं किया जाय कि मैं इतना नाम लेता हूँ, लोग मुझे नाम-जप करनेवाला समझें, नामका प्रेमी मानें, यह भाव होनेसे नामका महत्त्व कम हो जाता है। नाम-जप निष्काम-भावसे करना चाहिये। कामना करे कि मेरी पुत्रीका विवाह हो जाय, मुझे धन मिल जाय क्योंकि मैं रामनाम जपता हूँ, ऐसा करनेवाला रामनामकी बिक्री करता है। भगवन्नाम निष्काम-भावसे लेना चाहिये। केवल भगवान् की प्रसन्नताके लिये ही नाम लिया जाय और निरन्तर लिया जाय। भगवन्नाम थोड़ी देर लिया और छोड़ दिया, फिर थोड़ी देर लिया और छोड़ दिया, ऐसा करना ठीक नहीं है। जैसे माताएँ रसोई बनाती हैं, यदि वे दस-पन्द्रह मिनट चूल्हा जलाएँ और फिर आधा घण्टा छोड़ दें, फिर पाँच-दस मिनट बादमें चूल्हा जलाएँ फिर छोड़ दें, ऐसा करनेपर दिनभरमें भी रसोई नहीं बनेगी। लगातार बनाएँ तो शीघ्र बन जायगी। ऐसे ही भगवान् का नाम निरन्तर लेना चाहिये। हर समय चलते-फिरते, उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते भगवन्नाम लेना चाहिये।
रामनाम निशदिन रहे आठों पहर अखंड।
रामदास उस संतका नाम न छोड़े संग॥
जो रामका नाम नहीं छोड़ता, रामजी उसको नहीं छोड़ते, हरदम रामजी उसके साथमें रहते हैं। कोई जबतक चेत हो, होश हो, भगवन्नाम लेता है, अन्त-समयमें पाषाण काष्ठकी तरह बेहोश हो जाय तो भगवान् कहते हैं उस समय उसको मैं याद करता हूँ। जबतक उसको होश रहता है तबतक वह भगवान् के नामको नहीं छोड़ता। भगवान् कहते हैं ‘‘ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’’ (गीता ४। ११) जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं मैं (भी) उनको उसी प्रकार भजता हूँ। उसको होश नहीं, उसने होशमें भगवान् को याद किया, अब बेहोश हो गया, भगवान् कभी बेहोश नहीं होते। उसको भगवान् मनोवाञ्छित फल देते हैं। भगवन्नाममें अनन्त शक्ति, अनन्त और अपार महिमा है, ऐसा यह भगवन्नाम है। फिर कलियुगमें विशेष महिमा है। यह वृन्दावन धाम है, भगवान् के धाममें नाम-जपका विशेष लाभ होता है। जैसे खेती करते हैं, जहाँ जमीन बढ़िया होती है, वहाँ खेतीकी अच्छी उपज होती है। ऐसे ही जो तीर्थ स्थान हैं, भगवान् का स्थल है, यह वृन्दावन है, यहाँ भजन किया जाय तो उसका माहात्म्य बहुत विशेष है। यहाँ यदि पाप किया जाय तो उसका बड़ा भयंकर फल होता है। जमीन अच्छी होती है वहाँ घास, पौधे और काँटेवाले वृक्ष, बबूल आदिमें भी बड़े-बड़े काँटे होते हैं। यह जमीन तो सबको बल देती है। जो जैसा करे वैसा फल होता है। अत: तीर्थोंमें सदा सावधान होकर रहें। तीर्थके पाप वज्रलेप हो जाते हैं। तीर्थोंमें बड़े सावधान होकर भजन करो। ऐसे पवित्र स्थलमें भगवान् का नाम लेना, भगवान् के दर्शन करना और भगवान् की कथा सुननी चाहिये।
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि।
संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि॥
(रा०च०मा०, उत्तर० १३०। ६)
रामजीकी ही बातें सुनता रहे। मच्चित्ता मद्गतप्राणा (गीता १०। ९) भगवान् का ही प्राण हो जाय, भगवान् का ही चिन्तन होता रहे। एकके ही परायण हो जाय, नामके परायण हो जाय तो सब काम हो जायगा, सब काम एक भगवान् के नामसे हो जाता है। पढ़ा-लिखा नहीं है और कुछ नहीं जानता है तो भी एक भगवन्नामसे सब कुछ हो जाता है।
चारों वेद ठिंठोर के अन्त कहोगे राम।
सो रज्जब पहले कहो इतने में ही काम॥
रात और दिन भगवन्नाममें लग जायँ। यहाँ भगवान् की कृपासे भगवन्नामका प्रचार हो रहा है। यहाँ बहुत-से भाई-बहन भगवान् का नाम लेते हैं। गोमुखी लिये हुए भगवन्नाम-जप करते रहते हैं। यह बड़ा पवित्र स्थल है, यह भगवान् की लीला-भूमि है, यह बड़ा दिव्य देश है। इस देशमें आकर भगवान् का भजन करनेका बड़ा विशेष माहात्म्य है, कथाका भी बड़ा विशेष माहात्म्य है। यह स्थान बल देता है, शक्ति देता है और सामर्थ्य देता है। सज्जनो! जो भगवान् का नाम लेता है उसको फिर किसीकी परवाह नहीं रहती। बड़े उत्साहसे भगवन्नाम लेते रहो। भगवन्नाम मीठा लगे, प्यारा लगे।
सज्जनो-बहनो-भाइयो! भगवान् से माँगो पर संसारकी चीज माँगनेकी नहीं है, भगवान् की बात माँगनी है। हे नाथ! आपका नाम मीठा लगे, आपका नाम रुचिकर लगे, आपका नाम प्यारा लगे, आपका नाम भूलूँ नहीं। हे नाथ! आपके नाममें लग जाऊँ, यह माँगनेकी चीज है। भगवान् से और चीज माँगनी ही नहीं है। भगवान् से प्रेम माँगो, ज्ञान भी नहीं माँगना है। आपके चिन्तनमें लग जायँ; भगवान् का नाम प्यारा लगे, भगवान् का धाम प्यारा लगे, कथा प्यारी लगे। गंगा-यमुना भी भगवान् से सम्बन्ध होनेसे प्यारी लगे। जिस वस्तुका भगवान् के साथ सम्बन्ध हो गया, वह सब उद्धार करनेवाली चीजें हैं। आपने अजामिल उपाख्यान सुना। मेरी एक प्रार्थना और सुनें। कोई भी प्राणी कभी भी मरता हो, उसके पास बैठकर भगवन्नाम सुनाओ। कोई भी प्राणी हो, मनुष्यकी बात विशेष है। छोटा बच्चा मरता हो, बूढ़ा-जवान मरता हो, रोगी-निरोगी कोई मरता हो, मृत्यु समयमें भगवान् का नाम सुनाओ, इसका बड़ा भारी माहात्म्य है। उसे भगवान् का नाम सुनानेसे कल्याण हो जाता है। किसीको एक आदमी जितना भोजन करे उतना ही अन्न मिला और वह किसी भूखेको खिला दे तो कितना माहात्म्य होता है? मनुष्य-शरीर मिला है केवल परमात्माकी प्राप्तिके लिये, किसीकी मृत्यु होनेवाली हो, उसे अन्तमें भगवान् का नाम सुना दे तो उसका भी कल्याण हो जाय।
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय:॥
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित:॥
(गीता ८। ५-६)
जो पुरुष अन्तकालमें मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीरको त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात् स्वरूपको प्राप्त होता है—इसमें कुछ भी संशय नहीं है। हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! यह मनुष्य अन्तकालमें जिस-जिस भी भावको स्मरण करता हुआ शरीरका त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है; क्योंकि वह सदा उसी भावसे भावित रहा है।
अन्त मति सो गति अन्तमें भगवान् का नाम याद दिला दें। सबसे प्रार्थना है कोई मरता हो तो उसे संसारकी बात याद मत दिलाओ। यह लड़का है, पोता है, पड़पोता है, दामाद आ गया—ऐसी कोई बात मत करो। बस भगवान् का नाम सुनाओ राम राम राम राम....। ध्यान देकर सुनें! मनुष्य-शरीर परमात्माकी प्राप्तिके लिये मिला है। भगवान् कहते हैं—मैंने तुझे मनुष्य-शरीर केवल कल्याणके लिये दिया। अन्तकालमें भी तू मेरा नाम ले ले तो तेरी-मेरी इज्जत रह जाय। तेरा मानव-शरीर लेना सफल हो जाय और मेरा मानव-शरीर देना सफल हो जाय। भगवान् अन्तिम श्वासतक प्रतीक्षा करते हैं कि तू मेरा नाम ले ले, तेरा कल्याण हो जाय, यह छूट अन्तकालमें है, यह छूट एक बार ही मिलेगी। एक बार ही मनुष्य मरता है, दो बार थोड़े ही मरता है। परन्तु किसी दूसरे व्यक्तिको मृत्युके समय भगवन्नाम सुनानेका अवसर कई बार मिल सकता है। कोई मरता है तो भगवन्नाम सुना दो। सुननेवालेका मुफ्तमें कल्याण हो जायगा। ऐसा करनेसे भगवान् पर असर पड़ता है कि मैं सर्वसमर्थ हूँ, पर लोगोंके उद्धारकी मेरी ओरसे चेष्टा नहीं करता हूँ। यह बेचारा अल्प शक्तिवाला मनुष्य होकर भी दूसरोंके उद्धारकी चेष्टा करता है कि इसका कल्याण हो जाय। इसको आदर्श मानकर मेरेको भी ऐसा करना चाहिये, पर मैं नहीं करूँ तो कम-से-कम यह चेष्टा करूँ कि नाम सुननेवालेका कल्याण कर दूँ। भगवन्नाम सुनानेवालेकी चेष्टा भगवान् सिद्ध करते हैं। आपने खयाल किया! ऐसा करनेपर भगवान् पर असर पड़ता है कि इसमें सामर्थ्य नहीं है, अन्तर्यामी नहीं है, सर्वसमर्थ नहीं है, परम दयालु नहीं है और मैं सर्वसमर्थ हूँ, परम दयालु हूँ एवं सर्वज्ञ हूँ। यह अल्पशक्तिवाला होते हुए भी दूसरेका कल्याण करनेके लिये, उद्धार करनेके लिये नाम सुनाता है। यह दूसरेका उद्धार कर दे तो कम-से-कम इसका उद्धार तो मैं करूँ। ऐसा करनेपर भगवान् पर असर पड़ता है।
एक विलक्षण बात है, कोलकातामें एक ऐसी समिति है। कोलकातावाले लोग जानते हैं। वहाँ गोविन्द भवन एक संस्था है, जिसमें कई सदस्य हैं, समितिवालोंका उद्देश्य है कि कोई कहीं भी बीमार हो तो समितिवालोंको समाचार दे दो, वहाँसे समितिवाले लोग आ जाते हैं और वे लोग दो-दो घण्टे भगवन्नाम सुनानेकी डॺूटी लेकर आठ पहर (चौबीसों घण्टे) भगवन्नाम सुनाते हैं। आठों पहर भगवन्नाम सुनाओ, सेवा करो और लेना-देना कुछ भी नहीं, ऐसा उस समितिका उद्देश्य है। जल भी नहीं पीते, परन्तु मरणासन्न व्यक्तिको नाम सुनाते हैं, ऐसी संस्था है। उसमें हमारे मोहनलालजी पटवारी कहते थे कि रात्रिमें बारह बजेसे दो बजेका समय कठिन रहता है, उस समय मैं सुनाऊँगा। वह कहते थे मेरे सामने कई बार मरणासन्न व्यक्तिका शरीर छूटा है। वे समितिवाले आठों पहर ही सुनाते हैं और आठ पहरमेंसे ही किसी समयमें व्यक्तिका शरीर छूटता है। जिसे सुनानेके समय उत्साह होता है, उसको भगवान् अवसर देते हैं। इसलिये हर-एकका उद्धार कैसे हो? इसके लिये भगवन्नाम सुनाओ। कर्णवासकी बात है—एक बिल्लीके पीछे कुत्ता दौड़ा और उसे पकड़कर नोंच दिया। हमारे गुरुभाई उस बिल्लीको गंगाजीके किनारे ले गये और भगवन्नाम सुनाते ही रहे, सुनाते-सुनाते वह मर गयी, फिर उसे गंगाजीमें बहा दिया।
कोई प्राणी मरता है—गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधा उसे भगवन्नाम सुना दो, वहाँ यमराजके दूत नहीं आते। ऐसा विष्णुपुराणमें आता है, भागवतके छठे स्कन्धमें आता है, स्कन्दपुराणके काशीखण्डमें भी आता है। यमराज अपने दूतोंको कहते हैं जहाँ भगवन्नाम होता हो वहाँ मत जाना, बेइज्जती होगी, ऐसी आज्ञा दी है। इसलिये किसीकी मृत्यु होती हो, भगवान् का नाम सुनाओ, वहाँ कोई कैसा ही क्यों न हो। सीधी सरल बात है।
सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू।
लोक लाहु परलोक निबाहू॥
(रा०च०मा०, बाल० २०। २)
‘हरि नाम भजाँ सब काज सर’ माँगकर खानेवाले दिन भर रोटी माँगते फिरते हैं फिर भी नहीं मिलती। यदि वे बैठकर राम-राम करने लग जायँ तो उनके ठाठ हो जायगा, भाग्य बदल जाता है। भगवान् के नाममें रात-दिन लगनेवाला वह मनुष्य और तरहका हो जाता है।
भजन करे पातालमें परगट होत आकाश।
दाबी दूबी नहिं दबे कस्तूरीकी बास॥
सच्चे हृदयसे भगवान् में लग जायँ, फिर कोई कमी नहीं रहेगी। लोकमें परलोकमें कोई कमी नहीं रहेगी, सब तरहसे ठीक हो जायगा। सामान्यत: भाग्य नहीं बदलता, स्वभाव नहीं बदलता, पर भगवान् का भजन करनेसे, नाम लेनेसे भाग्य बदल जाता है, स्वभाव बदल जाता है, जीवन बदल जाता है। महान् दु:खी जीवन, नारकीय जीवन हो, वह भी संतोंका-सा जीवन हो जाता है, वह दुनियाका उद्धार करनेवाला संत बन जाता है। भगवन्नाम लेनेसे कितनी विलक्षणता आ जाती है। कलिकालमें नामका विशेष उत्तरदायित्व है। वेदमें तीन काण्ड हैं कर्मकाण्ड, उपासनाकाण्ड और ज्ञानकाण्ड।
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू।
राम नाम अवलंबन एकू॥
(रा०च०मा०, बाल० २७। ७)
राम-राम सुनाओ। इसका अर्थ यह नहीं कि कृष्णका नाम कम है, वासुदेव, हरि, मोहन, माधव, मुकुन्द, मुरारि आदि सबमें अनन्त शक्ति है। गोस्वामीजी महाराजने राम नाम लिया है। ऐसे ही संतोंने अलग-अलग नाम लिये। हर सम्प्रदायके नाम अलग-अलग हैं, कोई नाम कम नहीं है, यद्यपि रामायणमें आया है, नारदजी महाराजने भगवान् से वरदान माँगा है—
जद्यपि प्रभु के नाम अनेका।
श्रुति कह अधिक एक तें एका॥
राम सकल नामन्ह ते अधिका।
होउ नाथ अघ खग गन बधिका॥
(रा०च०मा०, अरण्य० ४२। ७-८)
नारदजीने राम-नाम सबसे श्रेष्ठ हो जाय यह वरदान भगवान् से माँगा, इसलिये राम-नामकी महिमा विशेष है। राम-नाम लेनेवाले अच्छे-अच्छे संत महात्मा हो गये, उनमें विचित्रता आ गयी। सज्जनो! भगवान् के नाममें लग जाओ। राम-नाम कितना सरल, सीधा, सुगम है। कोलकातामें कोठारीजी थे, वे बूढे़ थे, उनके लकवा मार गया, अत: बोल नहीं सकते थे। मैं उनके पास गया, मेरेको देखकर राम-राम बोले। लकवेमें भी राम-नाम आ जाय, कितना सुलभ है राम-नाम। लकवेमें जीभ अटक जाती है, बोल नहीं सकते, फिर भी रामका नाम आ जाता है। इतना सरल है, सुलभ है, इतने महत्त्वका है। अत: हर-एक भाईको राम-नाममें लग जाना चाहिये। आपको सुलभ लगे हरे राम हरे राम.... जपो, नम: शिवाय जपो। जितने भगवन्नाम हैं उसमें जो आपको प्यारा लगता है, जिसमें आपकी श्रद्धा है, उसमें प्रेम-सहित लगो, लग जाओ। यह भगवन्नाम लेनेका मौका है, पता नहीं शरीर कब चला जाय। ‘मारहि काल अचान चपेट की होइ घरीकमें राखकी ढेरी’। मरना तो पड़ेगा ही, इसलिये जबतक श्वास है, जबतक धौंकनी चलती है, आँखें टिमटिमाती हैं, शरीर है तबतक भगवान् में लग जाओ भाई! आग लग जाय, घर जल जाय, तब कुँआ खोदे? अब कहाँ कुँआ खोदता है, इसलिये पहलेसे भगवन्नाम जप कर लो। रात और दिन भगवान् में लग जाओ। पापीको भगवान् का नाम नहीं आता। भगवन्नाम आता है तो समझ लो कि भगवान् की बड़ी कृपा है, विशेष कृपा है। गीधराज जटायु भी भगवान् से कहते हैं—
जाकर नाम मरत मुख आवा।
अधमउ मुकुत होइ श्रुति गावा॥
(रा०च०मा०,अरण्य० ३१। ६)
नामका इतना माहात्म्य है? पहले नहीं जानते थे तो अब जान जाओ। गीताप्रेसके संस्थापक, संरक्षक, संचालक श्रीजयदयालजी गोयन्दका थे। उन्होंने तीन-चार जगह लिखा है मेरेको जितना भगवन्नामसे लाभ हुआ उतना गीताजीको छोड़कर किसीसे नहीं हुआ। उन्हें भगवन्नामसे और गीताजीसे लाभ हुआ है। हमें भी भगवन्नामका जप करना और गीताजीका अध्ययन करना चाहिये। उन्होंने प्रत्यक्षमें कहा कि भगवन्नामसे इतना लाभ हुआ जो मैं कह नहीं सकता। आपलोगोंने तत्त्वचिन्तामणिमें पढ़ा ही होगा। वर्तमानमें गीताप्रेसके द्वारा दुनियाका ऐसा लाभ हुआ है; और कितना लाभ हो रहा है, इसके मूलमें भगवन्नाम और गीताजी हैं। इस भगवन्नाम और गीताजीमें अपना लाभ, दुनियाका हित और परम कल्याण है।
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....