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जप करनेवालेके आनन्द और शान्ति स्वत: रहती है

प्रवचन—दिनांक २४-१२-१९५९, रामधाम, चित्रकूट

हमने सत्संगमें बातें तो बहुत सुन ली, पर मनका भाव नहीं बदला, भाव बदले बिना साधक ऊँचा नहीं उठता।

सबकी सेवा और हित करनेका भाव रहना चाहिये। इससे जल्दी उन्नति होती है।

प्रश्न—निरन्तर भजन कैसे हो?

उत्तर—जिनका भगवान् में प्रेम है या जिस आदमीके निरन्तर भजन होता है उनके साथ रहनेसे निरन्तर भजन हो सकता है।

नाम-जपसे बढ़कर और कोई चीज नहीं है। जब नाम-जपमें अलौकिक आनन्द आने लग जायगा, तब फिर नामजप छूटेगा ही नहीं। भगवान् के नामसे बढ़कर और कोई चीज नहीं है। यह बात शास्त्र, महापुरुष कहते हैं, अत: मान लेनी चाहिये। जैसे वकीलको हम हस्ताक्षर करके अपना गला उसके हाथमें देते हैं, अपनी गरजसे उसको रुपये भी देते हैं और सिफारिश भी करवाते हैं। महात्मा आपसे रुपये भी नहीं लेते और जन्म-मरणसे छूटनेकी दवाई देते हैं, अत: उनपर विश्वास करके काम शुरू कर देना चाहिये।

जैसे डॉक्टरपर विश्वास करके उसके कहे अनुसार काम करते हैं। इतना विश्वास भगवान् पर करके उनकी शरण हो जाय तो काम बन जाय। वैद्य, वकीलके जितना भी विश्वास भगवान् पर कर ले तो बेड़ा पार है। हमारे माननेकी और विश्वासकी कमी है।

भगवान् कहते हैं—

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥
(गीता ६। ३०)

जो पुरुष सम्पूर्ण भूतोंमें सबके आत्मरूप मुझ वासुदेवको ही व्यापक देखता है और सम्पूर्ण भूतोंको मुझ वासुदेवके अन्तर्गत देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता हूँ और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता है, क्योंकि वह मेरेमें एकीभावसे स्थित है।

जैसे बादलमें आकाश है उसमें अणुमात्र भी जगह ऐसी नहीं है जो आकाशसे रहित हो, ऐसे ही भगवान् इस संसारमें हैं। भगवान् कहें वैसा हमें करना चाहिये, पीछेका काम भगवान् का है।

जप करनेवालेके आनन्द और शान्ति स्वत: ही रहेगी। यदि आपके आनन्द और शान्ति नहीं रहती है तो जप अभी वैसा नहीं हो रहा है। जब जप स्वत: ही होने लग जायगा तब आनन्द, शान्ति स्वत: ही आने लग जायगी। जबतक नामजप स्वत: ही नहीं होता है, तबतक आनन्द और शान्ति कम रहती है।

हमारी इतनी बात मान लो कि हम आपको अनुभवमें लायी हुई सच्ची बात कहते हैं कि भगवान् का नाम ही सबसे श्रेष्ठ है। नामजप करनेपर भगवान् के नाम और रूपकी स्मृति स्वत: ही होती है।

भगवान्, महात्मा और शास्त्र जो कहते हैं वे ठीक ही कहते हैं, उनके वचनोंको सच्चा मानकर लाभ उठाना चाहिये। हम वैद्य और वकीलपर भी विश्वास करते हैं तो भगवान्, महात्मा और शास्त्रपर तो उससे भी अधिक विश्वास करना चाहिये।

वैद्यकी दवाईसे बचेंगे या नहीं यह शंका है, पर भगवान् और महात्माके वचनोंके अनुसार चलनेसे जन्म-मरणरूपी बीमारी रहती ही नहीं।

भगवान् के नाम-जपका पूरा फल जो निष्काम-भावसे श्रद्धा-प्रेमपूर्वक करे, उसको मिलता है। जैसे श्वास अपने आप ही आते हैं, वैसे ही भगवान् के नामका जप भी अपने आप ही होने लगे। भगवन्नाम-जप निष्काम-भावसे एवं श्रद्धा-प्रेमसे हो वह बहुत मूल्यवान् है।

आपके जीवनकी कमाई एक तरफ और भगवान् का नाम एक तरफ। यदि आप यहाँ करोड़ रुपये भी जमाकर लें तो आपके साथ नहीं चलेगा, कुछ काम नहीं आयेगा और भगवान् का नाम आपका जीवन-मरणसे उद्धार कर देगा, आपका कल्याण कर देगा।

मरनेके समय भगवान् का नाम बिना श्रद्धा-प्रेमके भी लेनेपर कल्याण हो जाता है। यह भगवान् की विशेष कृपा है। चाहे वह कितना ही महान् पापी हो, यदि मरनेके समय उसको भगवान् का स्मरण रह गया तो उसका कल्याण हो जायगा।

मरते समय किसी पशु-पक्षीकी आवाज आती हो तो उसको हटा देना चाहिये। हल्ला नहीं मचाना चाहिये। कुत्ता, चिड़ियाको हटा दें। मरनेके समय यदि पशु-पक्षीका स्मरण हो गया तो पशु-पक्षी बनना पड़ेगा। इसलिये मरनेवालेके पाससे पशु-पक्षी और बुरे संस्कारोंकी चीजोंको हटा देना चाहिये।

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