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सारे तीर्थोंकी यात्रासे बढ़कर एक भगवन्नाम

प्रवचन-तिथि—ज्येष्ठ शुक्ल ७, संवत् १९९२, सन् १९३५, टीबड़ी, स्वर्गाश्रम

नामजप और भगवान् के स्वरूपके ध्यान से सारे पापों और दु:खोंका नाश हो जाता है। संशय तो रह ही कैसे सकता है, यह विश्वास कर ले। प्रेमसे, करुण-भावसे प्रार्थना करे तो प्रभु दर्शन दे देवें। दर्शन होनेपर—

भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशया:।
छीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन्दृष्टे परावरे॥

परमात्माका साक्षात्कार होनेके बाद हृदयकी सारी ग्रन्थियाँ समाप्त हो जाती हैं, सारे संशय नष्ट हो जाते हैं एवं सारे कर्म अर्थात् संचित, प्रारब्ध एवं क्रियमाण कर्म नष्ट हो जाते हैं। भगवान् की भक्ति कैसे हो? वृद्धावस्था निकट आ गयी, अब संशय त्यागना चाहिये।

मैं वचन-मात्रसे तो आपकी शरण हूँ ही, अब यही प्रार्थना है कि अब विलम्ब मत करें, दर्शन दें, प्रेम बढ़ायें। खूब विश्वास रखकर जो भी जगह अच्छी जँचे, वहीं डेरा डाल दे। सभी भूमि गोपालकी। एक भगवान् के नामके उच्चारणका जो फल है वह सभी तीर्थोंके दर्शनका नहीं है। आप कहाँ-कहाँ दौड़ेंगे। एक बार सारी पृथ्वीकी परिक्रमा कर लो चाहे एक भगवन्नामका उच्चारण कर लो, भागनेकी क्या आवश्यकता है। हमें तो ऐसी यात्रा करनी चाहिये जिससे इस संसारकी यात्रा फिर नहीं करनी पड़े। मृत्युका समय आये तो यही निश्चय करे कि मेरी मुक्तिमें कोई शंका नहीं है। एक-एक चीज मुक्ति देनेवाली है—जैसे एक बार भगवन्नामका उच्चारण कर लो। गीताजी, गंगाजल, काशी, महापुरुषका संग—ये सब मुक्ति देनेवाले हैं।

जिसके घरमें आग लग रही है, उसे नींद नहीं आती। किसीके आग लग जाती है तो बुझाओ-बुझाओ चिल्लाता है, इसी प्रकार बुढ़ापा है, मृत्यु है, अब समय नहीं रहा, जल्दी काम करो, नहीं तो घर जल जायगा। जिसे घर जलता दीख जाता है, वह दूसरी बात नहीं सुनता। आपकी आयु बीत रही है। यही घरके आग लग रही है। समय ही असली धन है यह व्यर्थ जा रहा है। समय व्यर्थ जाना घरके आग लगनेके समान है। सोये और लोगोंकी निन्दामें समय व्यर्थ बिताया। भोग, प्रमाद, आलस्य और पाप—इन चारोंमें समय जाना घरमें आग लगना है, बिना आग बुझाये उसको चैन नहीं पड़ता। जो इस प्रकार सोते हैं उसने घरके आग लगा रखी है। जो समयको अनमोल समझते हैं उनका समय व्यर्थ नहीं जाता। भगवत् कृपाका आश्रय लेकर भजन-ध्यानका साधन जोरसे करना चाहिये। इसमें एक तो अभिमान नहीं होता, दूसरे भगवान् की दया काम आती है। प्रयत्न करनेसे दया खिल जाती है। प्रारब्धपर काम नहीं छोड़ना चाहिये। फल प्रारब्धपर छोड़ दे। भगवान् की दया यही है कि प्रयत्न करे। केवल दया-दया पुकारना झूठा है। भगवान् का प्रभाव, रहस्य और तत्त्वको महापुरुषोंसे, शास्त्रोंसे जाननेकी चेष्टा करे। उनका प्रभाव, सामर्थ्य ऐसा है कि एक क्षणमें उद्धार कर दे, रहस्य जना दे।

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण

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