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मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम सुनानेसे मुक्ति

प्रवचन—दिनांक-२२-५-१९५७, प्रात:काल ८.१५ बजे, वटवृक्ष, स्वर्गाश्रम

मरणासन्न व्यक्तिका समाचार सुनकर तत्काल कीर्तन आदिकी व्यवस्था करनी चाहिये। प्रत्येक मनुष्यको यह अन्तिम एक क्षण मुक्तिके लिये मिलता है, यदि वैसा क्षण चाहिये तो मरणासन्न व्यक्तिके पास होनेवाले कीर्तनमें शामिल हो जाओ। जितने कीर्तन सुनानेवाले शामिल हुए, सब मुक्तिके अधिकारी हो गये। जब किसीकी हत्या करनेके लिये शामिल होनेपर सबको फाँसी होती है, तब मरनेवालेको कीर्तन सुनानेमें सबकी मुक्ति क्यों नहीं होगी? वहाँ जाकर भगवन्नाम सुनानेके लिये धरना लगा दें। इस कामके लिये समय देना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।

इस कामके लिये भजन, ध्यान, सत्संग छोड़ दो। अपना आवश्यकसे आवश्यक काम, वस्तु छोड़ दो। यह बहुत अधिक महत्त्वकी बात है। आग लगनेपर आग बुझाना तो लौकिक लाभ है, किन्तु मरनेवालेकी मुक्तिकी व्यवस्था करना आध्यात्मिक लाभ है। यदि पाँच जगह मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम सुनानेकी चेष्टा करते हैं और एक जगह सफलता मिल जाय तो भी लाभमें हैं।

(१) मरनेवाला व्यक्ति भगवन्नाम सुनना चाहे और घरवाले भी चाहें तो कीर्तन या भगवन्नाम सुनाना एक नम्बर है।

(२) मरनेवाले व्यक्तिको ज्ञान नहीं, पर घरवाले सुनाना चाहें—यह दो नम्बर है।

(३) मरनेवाला व्यक्ति भगवन्नाम सुनना चाहे, किन्तु घरवाले नहीं चाहें तो भी सुनाये—यह तीन नम्बर हैै।

(४) मरनेवाला व्यक्ति भगवन्नाम सुनना नहीं चाहता, किन्तु घरवाले सुनाना चाहें—यह चार नम्बर है।

यहाँ तक तो कर लें, किन्तु कोई नहीं चाहे तब कोई उपाय नहीं है। मरणासन्नको नाम सुनानेके लिये बुलाने आ जायँ तो समझे भगवान् का बुलावा आया है।

दूरसे आनेवाले भावुक व्यक्ति गीताप्रेसको तीर्थ मानते हैं। वास्तवमें यह तीर्थ नहीं है, किन्तु श्रद्धालुके लिये उसकी भावनाके अनुसार लाभ हो जाता है। प्रधान तो भाव ही है। गीताप्रेस तो वास्तवमें भगवान् की है, चाहे कोई माने या न माने, इसलिये यहाँ बहुत उदारताका व्यवहार करना चाहिये एवं चार बातोंका खयाल करना चाहिये—प्रेम, विनय, त्याग और अभिमानका त्याग।

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....

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