मरणासन्नको भगवन्नाम सुनाना अति महत्त्वपूर्ण
प्रवचन—दिनांक-१-५-१९४१, संवत् १९९८, स्वर्गाश्रम
मरणासन्न मनुष्यका मल-मूत्र साफ करना बड़ी सेवा है। पर वह तो दूर, मरणासन्न व्यक्तिको भगवान् का नाम और कीर्तन सुनाना भी मुश्किल हो रहा है। भगवान् ने कहा है—
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय:॥
(गीता ८। ५)
जो पुरुष अन्तकालमें मेरेको ही स्मरण करता हुआ शरीरको त्यागकर जाता है, वह मेरे साक्षात् स्वरूपको प्राप्त होता है, इसमें कुछ भी संशय नहीं है।
इस श्लोकमें भगवान् ने कह दिया कि मेरा ही स्मरण करता हुआ शरीरको छोड़कर जाता है उसकी मुक्तिमें कोई शंकाकी बात नहीं। इसमें कोई शंका करे तो क्या कहें?
यहाँ चार सौ व्यक्तियोंको सत्संग सुनानेकी अपेक्षा मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम सुनाना अधिक अच्छा है; क्योंकि यदि एक व्यक्तिका भी भगवन्नाम सुनानेसे कल्याण हो गया तो मेरा तो काम बन गया। ज्ञानकी दृष्टिसे सभी आत्मा हैं, किसी भी शरीरकी आत्माका कल्याण हुआ तो अपना ही कल्याण हुआ; क्योंकि वह अपना ही आत्मा है।
एक भाई रात-दिन इस तरह मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम नहीं सुना सकता, न मालूम किसके सुनानेकी पारीमें वैसा अच्छा मौका आवे। भगवन्नाम सुनानेमें अपना भजन होता है और दूसरेको भी सुननेको मिलता है। कोई बीमार है, कोई मर रहा है, उसकी सेवा करना बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है। उसको भगवन्नाम तथा गीताजी सुनाना बड़ा कल्याणकारी है।
मरणासन्न व्यक्तिको गीता-पाठ, राम-नाम, नारायणका-नाम सुना रहे हैं, सुनते-सुनते वह मर गया, उसको तो भगवान् की प्राप्ति हो गयी, सुनानेवालेको क्या मिला? भगवान् कहते हैं—हे अर्जुन! जो गीताको मेरे भक्तोंको सुनाये, वह मेरी भक्तिके द्वारा मुझे प्राप्त हो जायगा। इस प्रकार करनेवाला मुझे बहुत प्यारा है, ऐसा प्यारा न कोई दूसरा हुआ है, न होगा, यह भगवान् का वाक्य है।
एक व्यक्ति पचास वर्षोंसे साधन कर रहा है, उसका यदि हमारे द्वारा नाम सुनानेसे कल्याण होता है तो अपना भी कल्याण हो ही गया, नाम सुनानेका फल मिल गया।
हमारा मनुष्य-जन्म कल्याणके लिये है। यदि अपना कल्याण नहीं हुआ और हमारे द्वारा दूसरेका कल्याण हो गया तो हमारा कल्याण हो ही गया। जो स्वयं उपवास करके दूसरेको भोजन कराता है वह स्वयं भोजन करनेसे भी बढ़कर है। हमारे द्वारा हजारों वैकुण्ठ जाते हैं, स्वयं नरकमें जायें तो उससे भी बढ़कर है, वहाँ जाकर नरकके जीवोंका कल्याण करें। ऐसा करनेसे उसको भगवान् की पदवी मिलेगी; क्योंकि भगवान् का काम है जीवोंका उद्धार करना, वह जीवोंका उद्धार करता है तो भगवान् है। मरणासन्न व्यक्तिको नाम सुनानेकी ऐसी महिमा है। मरणासन्न व्यक्तिको पाँच मिनट भगवन्नाम सुनानेसे जो लाभ होता है, वह साधन करनेसे बीस वर्षमें भी नहीं होता।
इसपर विचार करनेसे यही बात आती है कि सब काम छोड़कर यह काम करना बड़ा ही उत्तम है, भजन-सत्संगसे भी बढ़कर है। सबसे बढ़कर है, मुक्तिसे भी बढ़कर है। इसकी महिमा बहुत अधिक है। मरनेवाले व्यक्तिके पास भगवान् का नाम, गीता सुनाना और वह सुनते हुए मर गया तो उसका कल्याण है ही, अपना भी कल्याण है। यह काम सबसे बढ़कर है, लोभी आदमीकी तरह ऐसे अवसरकी खोज करनेकी चेष्टा करनी चाहिये। मरणासन्न व्यक्तिको भगवान् का नाम, गीता सुनाना यह काम सबसे महत्त्वपूर्ण समझकर करना चाहिये।
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....