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निष्कामभावसे भजन करें

प्रवचन-तिथि—चैत्र शुक्ल १३, संवत् १९९९, सन् १९४२, वटवृक्ष, स्वर्गाश्रम

निष्काम-कर्मके आरम्भका नाश नहीं होता और उल्टा फल भी नहीं होता। थोड़ा-सा भी निष्काम कर्म महान् भयसे तार देता है। अन्तकालका थोड़ा भी भजन-ध्यान तार देता है। अन्तकालका थोड़ा निष्काम भाव भी वृद्धिको प्राप्ति होकर कल्याण करता है।

भगवान् मनुष्य शरीर देकर हमें अपनी प्राप्तिका मौका देते हैं। उसको व्यर्थ खोनेपर अन्तकालमें भी मौका देते हैं। उस समय भी यदि भगवान् का स्मरण हो जाता है तो कल्याणकी प्राप्ति हो सकती है। किन्तु इसका विश्वास करके हमें अन्तकालपर ही निर्भर नहीं रहना चाहिये। उस समय कष्टके कारण भगवान् की या भगवन्नामकी याद आये या नहीं, क्या विश्वास?

ज्यादा भजन होनेपर उसका ऐसा अभ्यास हो जाता है कि उसके स्वत: भजन होने लग जाता है। पूर्वमें किये हुए अभ्यासवश वह साधनमें लग जाता है और पूर्णताको प्राप्त कर लेता है।

हमें कर्तव्य समझकर भगवद्भजन करना चाहिये, मान-बड़ाई, प्रतिष्ठाके लिये नहीं। पुत्रादि पहले पिछले जन्मोंमें थे ही जिन्हें आप छोड़कर आये हैं फिर क्यों उन्हें चाहें, उनमें तो दु:ख-ही-दु:ख है अत: हमें भगवद्भजन ही करना चाहिये।

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण...

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