संसारसे वैराग्य और भगवान् में प्रेम
प्रवचन—दिनांक १७-५-१९४५, प्रात:काल ७.३० बजे,, वटवृक्ष, स्वर्गाश्रम
वैराग्य यहाँपर स्वाभाविक है ही। यहाँपर वैराग्यवान् पुरुषके द्वारा वैराग्यकी बात कही जाय तो अधिक लाभ है। हमें तो भगवान् और महात्माके वचनोंका अनुवाद करना है। भगवत्प्रेमका विषय बड़ा गंभीर है, प्रेम कहाँसे लावें? कहीं बिकता हो तो ले आवें।
प्रेम न बाड़ी नीपजे प्रेम न हाट बिकाय।
प्रेमका तत्त्व एक नम्बरपर भगवान् जानते हैं। दूसरे नम्बरपर भगवान् के जो प्रेमी हैं वे जानते हैं, किन्तु वे भी कह नहीं सकते। यह विषय ‘मूकास्वादनवत्’ गूँगेके स्वादकी तरह है। संसारसे वैराग्य और भगवान् से प्रेम, बात बड़ी अच्छी है। वर्तमानमें हमारा संसारसे प्रेम है और भगवान् से वैराग्य है—बात बिलकुल उलटी है। क्या करना चाहिये? सब बात उलट देनी चाहिये। संसारसे वैराग्य होनेसे उपरामता स्वत: ही हो जाती है। भगवान् में प्रेम होनेसे भगवान् का ध्यान स्वत: हो जाता है। यहाँपर वैराग्य अपने आप होना चाहिये। यहाँ वन, पहाड़ और गंगाजी—ये तीनों ही दीखते हैं। यह स्थान पवित्र है तथा यहाँ एकान्त भी है। ध्यानके लिये यह उपयोगी स्थान है। यहाँपर भक्ति, ज्ञान और वैराग्यकी मानो वर्षा हो रही है। ध्यानावस्थामें यदि प्राण चले जायँ तो बेड़ा पार है। मृत्युका अवसर प्राप्त हो जाय तो परमात्माके ध्यानमें मस्त हो जाय। फिर चाहे प्राण चले जायँ। उस समय यदि हाय-तौबा मचाने लग जाय तो नरकमें जायगा।
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय:॥
(गीता ८। ५)
जो पुरुष अन्तकालमें भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीरको त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात् स्वरूपको प्राप्त होता है—इसमें कुछ भी संशय नहीं है।
इस श्लोकके तात्पर्यको खूब याद कर ले। कैसा ही नीच, पापी, नास्तिक क्यों न हो उसका उद्धार हो जाता है। हिचकी, डकार, छींक या कोई भी खटकेकी बात हो तो भगवान् को याद कर ले और हर समय मृत्युकी प्रतीक्षा करता रहे। मार्कण्डेय मुनि शिवजीकी उपासना करते थे। यम पाश लेकर आये तो मार्कण्डेयजीने झट शिवलिंगको पकड़ लिया। यमराज अपना मुँह लेकर वापस चले गये। अपने तो ‘हारेका हरिनाम’ है। जब हताश हो जाय तो भगवान् का आश्रय ले लेना चाहिये। द्रौपदीने चीर हरणके समय भगवान् को याद किया तो भगवान् ने रक्षा की। हर समय भगवान् को याद रखें। भगवान् का भी नियम है कि जो भगवान् को हर समय याद रखता है, भगवान् उसको हर समय याद रखते हैं। हर समय भगवान् को याद रखनेका अभ्यास करें, उससे वैराग्य बढ़ जायगा और वैराग्य बढ़ गया तो अभ्यास स्वत: ही बढ़ेगा। भगवान् के नामका जप करना बहुत सरल काम है। अभ्यास करना आपके हाथकी बात है। जीभसे नामका जप करें। श्वास हर समय चलता रहता है उसके द्वारा नाम-जप करें। श्वास मृत्युके समय तक चलता रहता है, अत: मृत्युके समय नामका स्मरण हो ही जाता है। श्वासके द्वारा नामका जप करें यह सबसे सुगम उपाय है। वैराग्यके साथ-साथ उपरति स्वत: ही हो जाती है। संसारसे मनको हटाना उपरति है। भगवान् ने कहा है—‘‘असङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा’’ संसार वृक्षकी जड़ें दृढ़ हैं, अत: उन्हें काटनेके लिये शस्त्र भी दृढ़ होना चाहिये। संसारको काटना क्या है? संसारको भुलाना। भुलाना क्या? संसारसे उपराम होना। परम-उपरति हो जाय तो परम-शान्ति हो जाती है। ध्यानावस्थामें परम-शान्ति पहली सीढ़ी है।
प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थित:।
मन: संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्पर:॥
(गीता ६। १४)
ब्रह्मचारीके व्रतमें स्थित, भयरहित तथा भलीभाँति शान्त अन्त:करणवाला सावधान योगी मनको रोककर मुझमें चित्तवाला और मेरे परायण होकर स्थित होवे।
काया, शिर और ग्रीवाको समान और अचल धारण किये हुए दृढ़ होकर ऐसे स्थानपर बैठे तो ध्यान स्वत: ही लगता है। संसारका चिन्तन करते हुए मरोगे तो संसारमें फिर जन्म लेना पड़ेगा। जड़भरतका बड़े उच्चकोटिका साधन था, किन्तु अन्तकालमें हिरणकी स्मृति हो गयी, इसलिये हिरण बनना पड़ा। मृत्यु अचानक आ जाती है, इस बातको याद रखते हुए भगवान् को हर समय याद रखें। वैराग्यका नशा अलौकिक है, यह मादक नशेकी भाँति नहीं है। यह तो आपको जब प्राप्त होगा तब अनुभव होगा। नशा करे तो वैराग्यका करे, यह सात्विक है, इससे उपरति होती है और इससे परमात्माका ध्यान स्वत: ही होता है।
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....