गीता गंगा
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व्यवहारसे भजनमें बाधा न आवे

ईश्वरपर विश्वास रखना चाहिये। फिर किसीकी भी शक्ति नहीं है जो आपका बाल भी बाँका कर सके।

नाम-जप व सत्संगकी विशेष चेष्टा करनी चाहिये। हजार काम छोड़कर यह चेष्टा करनी चाहिये। भगवान् के भजनके प्रभावसे सब कुछ ठीक हो सकता है।

भगवान् के भक्तको देखनेसे, चिन्तन करनेसे भगवान् तुरन्त याद आने चाहिये। यदि महापुरुषके शुद्ध हृदयमें अपनी स्मृति हो गयी तो हमारा कल्याण हो जायगा।

महापुरुष हमें स्पर्श करें तो हमारे सारे शरीरमें प्रेमकी बिजली दौड़ जायगी। उनके छूनेमें ज्यादा लाभ है। हम भी उनका स्पर्श करें तो लाभ है। इसमें अग्निका और घासका दृष्टान्त लागू पड़ता है।

महापुरुष जिस रास्तेमें जायँगे, सबके पाप नष्ट करते हुए जायँगे। महापुरुषकी हमपर दृष्टि पड़ गयी, हम सब पवित्र हो गये।

यह बात प्रत्यक्ष समझ लेनी चाहिये कि आपने किसीको जाकर भगवान् का नाम सुनाया और वह सुनता हुआ मर गया तो उसका तो जन्म ही सफल हो गया।

  1. अपना कल्याण चाहनेवालेको बहुत अधिक व्यवहार नहीं करना चाहिये। इतना व्यवहार करे जिससे भजनमें बाधा न आवे।

  2. यदि जीविका चल सके तो व्यवहार न करे। हर समय भजन-ध्यान, सेवा ही करे।

  3. सेवा भी उतनी ही करे जितनी भजन-ध्यानके साथ-साथ हो सके।

  4. अभ्यास डालनेसे भजन-ध्यान करते हुए भी सेवा हो सकती है।

  5. वर्तमान समयमें व्यवहारका विस्तार रखते हुए कल्याण हो जाय, यह असम्भव बात है। ये बातें प्रत्यक्ष अनुभव करके बहुत लोगोंसे सुनकर कही गयी हैं।

    नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....

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