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अपने-आपको उठाते रहो

याद रखो—वही मनुष्य उच्च स्तरपर पहुँचता है, जो प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपद अपनेको—अपनी बुद्धिको, मनको, आचार-विचारको उच्चतर स्तरपर चढ़ाता रहता है। अतएव निरन्तर सावधानीके साथ पवित्र विचारोंको—विशुद्ध भावोंको बनाते और बढ़ाते रहो। कभी प्रमाद मत करो, कभी असावधान मत होओ।

याद रखो—विशुद्ध भाव तथा पवित्र विचार तभी समझे जा सकते हैं, जब मनुष्यके द्वारा सहज ही दूसरोंको सुख पहुँचे, दूसरोंका हित-सम्पादन हो तथा इस पर-हित-सुख-सम्पादनरूप सन्मार्गके द्वारा वह मनुष्य-जीवनके एकमात्र लक्ष्य भगवान‍्की ओर अग्रसर होता रहे। पर-हित-सुखका सम्पादन कर्तव्यके बोधसे नहीं, न किसी प्रकारका प्रत्युपकार, प्रतिफल या पुरस्कार पानेके लिये किया जाय। वह स्वाभाविक ही मनमें हर्ष बढ़ानेवाला प्रिय कार्य हो। उसके किये बिना रहा न जाय।

याद रखो—व्यवहारमें सत्यता, वाणीमें मधुरता और नम्रता, बर्तावमें सरलता, विचारमें पर-हितका लक्ष्य, इन्द्रियोंमें संयम, बुद्धिमें नित्य-सत्य-विवेक आदि उत्तरोत्तर सहजरूपसे बढ़ते रहें, पर कहीं भी किसी प्रकारका अभिमान न आने पाये।

याद रखो—संयम, त्याग, प्रेम, सेवा, सद्‍व्यवहार आदि सद‍्गुण तो सदा बढ़ते रहने चाहिये; परंतु यदि इनका अभिमान जरा भी आ गया तो ये सद‍्गुण रहेंगे नहीं। वह अभिमान अपनी मात्राके अनुसार सारे सद‍्गुणोंका न्यूनाधिकरूपमें नाश करता रहेगा, अन्तमें अभिमानमात्र रह जायगा। सद‍्गुण चले जायँगे। अतएव समस्त सद‍्गुणोंका नाश और समस्त दुर्गुणोंका विकास करनेवाले अभिमानसे सदा बचे रहो।

याद रखो—अपनेमें यदि कोई सद‍्गुण है तो वह भगवान‍्की सम्पत्ति है—दैवी सम्पत्ति है, भगवान‍्की कृपासे मिली है। भगवान‍्की इस कृपाके लिये सदा भगवान‍्के कृतज्ञ रहो और अपने दैन्यको प्रत्यक्ष देखते हुए उस महान् भगवत्कृपाका और भी दृढ़ अवलम्बन तथा आश्रय प्राप्त करो। फिर अभिमानका उदय नहीं होगा। पद-पदपर भगवान‍्की कृपा दिखायी देगी, उत्तरोत्तर सद‍्गुण बढ़ते रहेंगे। जीवन भगवान‍्का मूर्तिमान् सेवास्वरूप बनकर परम पवित्र तथा सफल हो जायगा।

याद रखो—जो अपनेको वास्तवमें उच्च स्तरपर ले जाना चाहता है, वह सहज ही सर्वोच्च तत्त्व भगवान‍्का आश्रय ग्रहण करता है। सारी उच्चता, महानता, पवित्रता, सुख-समृद्धि, दैवी सम्पत्ति भगवान‍्से ही आती है, भगवान् ही उन सबके अनन्त निधि हैं। भगवान‍्को छोड़कर जो अन्य प्राणी-पदार्थ-परिस्थितिका आश्रय लेता है; वह उस प्राणी-पदार्थ-परिस्थितिके स्वभाव-गुणको ही प्राप्त होता हैऔर भगवान‍्को छोड़कर शेष सभी कुछ दोषमय तथा दु:खपरिणामी हैं।

याद रखो—भगवान् ऐसे सुदृढ़ अवलम्बन हैं कि उनका आश्रय लेनेवाला कभी गिरता नहीं, भगवान् उसकी पूरी देख-रेख, सँभाल रखते हैं; पर भगवान‍्के स्थानपर जो अभिमानका आश्रय ले लेता है, वह निश्चय ही गिरता है—चाहे उसने अभिमानका नाम भी भगवान् रख छोड़ा हो; अतएव नित्य-निरन्तर सर्व-शक्तिमान्, सर्वज्ञ, परम सुहृद् भगवान‍्का आश्रय करके अपने-आपको उठाते रहो, कभी गिराओ मत।

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