परमार्थ की मन्दाकिनी
(श्रद्धेय श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार)
निवेदन
संतोषी परम सुखी
अपने ‘स्व’ को विस्तृत करें
मान-अपमानमें सम रहें
एकमात्र भगवान्में ही राग करें
सभी नाम-रूपोंमें भगवान्को अभिव्यक्त देखते हुए व्यवहार करें
सब कुछ प्रभु हैं और उनकी लीला है
सच्चे सुखकी प्राप्तिका उपाय
मनुष्य-जीवनका एकमात्र उद्देश्य—भगवत्प्राप्ति
संतका संग एवं सेवन करें
परदोष-दर्शन तथा पर-निन्दासे हानि
एक ही परमात्माकी अनन्तरूपोंमें अभिव्यक्ति
भगवान्की उपासनाका यथार्थ स्वरूप
विश्वात्मा भगवान्की सच्ची पूजा
भगवत्प्राप्तिका मार्ग
आनन्द एकमात्र परमात्मामें ही है
अपने-आपको उठाते रहो
क्रोध सहस्रों दोषोंकी खान है
श्रीमद्भगवद्गीतानुसार भगवत्प्राप्तिके उपाय
मानव-धर्म
सब रूपोंमें भगवान्को अनुभव करें
मनुष्यके दो बड़े शत्रु—राग और द्वेष
भगवान्का प्रत्येक विधान परम मंगलमय और कल्याणप्रद है
शास्त्रोक्त कर्म ही करने चाहिये
भगवान् और भोग
मानव-जीवनकी सफलता
जीवनमें विचारोंका महत्त्व
भोगकामनाके त्यागका उपाय
परदोष-दर्शन न करें
ममताके केन्द्र केवल भगवान् बन जायँ
शुभ-चिन्तनका अभ्यास बनावें
भगवत्प्राप्ति अथवा ज्ञानकी कसौटी
भगवान्को एकमात्र लक्ष्य बनाकर उनके सम्मुख हो जाइये
भगवान्पर निर्भरशील बनिये
संत बनो, कहलाओ मत
अपने आत्मस्वरूपको सदा स्मरण रखें
सम्पूर्ण आचरण भगवत्प्रीत्यर्थ हों
भगवत्प्राप्तिका साधक ही यथार्थ मानव है
अपनी आवश्यकताओंको कम-से-कम रखो
पुण्यकर्ममय साधुजीवन
महात्माओंका दर्शन-संग अमोघ है
नित्यसुखकी प्राप्तिका उपाय
हिंसा महापाप है
शाश्वत शान्ति केवल भगवान्से ही प्राप्त हो सकती है
शान्ति-सुखकी प्राप्तिके साधन
शरीरका आराम और नामका नाम