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भगवान‍्को एकमात्र लक्ष्य बनाकर उनके सम्मुख हो जाइये

याद रखो—नित्य तथा पूर्ण सुख एकमात्र भगवान् या ब्रह्ममें ही है। इसीलिये जबतक भगवद्दर्शन या ब्रह्मसे संस्पर्श नहीं हो जाता, तबतक नित्य पूर्ण सुख मिल ही नहीं सकता। सुख सभी चाहते हैं और सभी नित्य तथा पूर्ण सुख चाहते हैं; परंतु भूल यह होती है कि वह सुख खोजा जाता है—जागतिक विषयों, परिस्थितियों और वस्तुओंमें। जगत‍्में ऐसा कोई भी विषय, परिस्थिति और वस्तु नहीं है, जो नित्य हो तथा पूर्ण हो।

याद रखो—विषय, परिस्थिति और वस्तुमें जो सुख देखा या पाया जाता है, वह वास्तवमें सुख है ही नहीं। सुख वह है, जो नित्य हो, पूर्ण हो। इसीलिये भारतके ऋषि-मुनियोंने सुदीर्घ समाधि तथा ध्यानलब्ध दृष्टिसे सुखका अनुसंधान किया और उसे पाया एकमात्र नित्य सत्य सनातन पूर्ण भगवान‍्में या ब्रह्ममें। इसीसे उन्होंने एकमात्र भगवत्प्राप्ति या ब्रह्म-संस्पर्शको ही सुख माना और उसीकी प्राप्तिके लिये साधनोंकी शिक्षा दी और इसीलिये भारतीय मानव-समाजने अपना लक्ष्य भोग न मानकर भगवान‍्को माना।

याद रखो—मिथ्या भ्रमवश मनुष्यकी भोगोंमें—परिस्थिति और पदार्थोंमें सुखकी आस्था हो रही है और उन्हींकी प्राप्ति, रक्षा तथा उत्तरोत्तर वृद्धिमें वह अपना जीवन खो रहा है। कभी-कभी जो आंशिक तथा क्षणस्थायी सुख-सा दीखता है, उसीको वह बढ़ाना चाहता है, पर वह बढ़ता तो है ही नहीं, उसका दीखना भी बंद हो जाता है। तथापि मनुष्य भोगोंसे सुखकी आशा नहीं छोड़ता और नित्य नये प्रयास करनेमें नित्य नयी अशान्ति, क्षोभ, दु:ख तथा पापकी उपलब्धि करता रहता है। यही उसका महामोह है।

याद रखो—एकमात्र भगवान् ही यथार्थ एवं नित्य सत्य सुखस्वरूप हैं—यह मानकर, इसपर विश्वास कर जीवनको भोगोंसे हटाकर भगवान‍्की ओर मोड़ो। एकमात्र भगवान‍्के ही शरणापन्न होकर भगवान‍्में ही सुख देखो, उन्हींसे माँगो और उन्हींको माँगो। भगवान् देंगे, अवश्य देंगे। उनसे ही और उनमें ही हमें शाश्वत सुख मिलेगा।

याद रखो—भगवान‍्में विश्वास होनेपर दु:ख नामकी वस्तुका ही अभाव हो जायगा। फिर तो प्रत्येक परिस्थितिमें उनके दर्शन तथा उनका संस्पर्श प्राप्त होता रहेगा। इससे वह अनन्त सुख मिलेगा, जो कभी मिटेगा नहीं, घटेगा नहीं, उत्तरोत्तर बढ़ता ही रहेगा।

याद रखो—मोहग्रस्त मनुष्य ही भगवान‍्को छोड़कर भोगोंमें रचा-पचा रहता है, अपने सारे बुद्धि-बल, शरीर-बल तथा मन-इन्द्रियोंको निरन्तर भोगोंकी प्राप्ति और उनके सेवनमें ही लगाये रखता है। इसीसे वह मानव-जीवनके एकमात्र परम लाभ भगवत्प्राप्तिसे वंचित रहता है। इसीलिये वह जीवनभर नयी-नयी अनन्त चिन्ताओं, उद्वेगों तथा दु:खोंसे ग्रस्त, दिन-रात भयत्रस्त और दिन-रात शोक-विषादका अनुभव करता हुआ भोगप्राप्ति, भोगरक्षण तथा भोगवृद्धिके लिये नरकके द्वारस्वरूप काम-क्रोध-लोभका आश्रय लेकर नये-नये पापकर्मोंमें प्रवृत्त रहता है। इस प्रकार दुर्लभ मानव-जीवनको व्यर्थ तथा अनर्थमय कार्योंमें लगाकर वह उसे केवल नष्ट ही नहीं करता, बहुत बड़े-बड़े भावी संकटोंका निर्माण कर लेता है।

याद रखो—जीवनके मूल्यवान् क्षण बीते जा रहे हैं। अतएव शीघ्र विचार करो और भगवान‍्को ही जीवनका एकमात्र परम लक्ष्य बनाकर उनके सम्मुख हो जाओ। भगवान‍्की कृपाका आश्रय लेकर सभी प्राप्त सामग्रियों तथा परिस्थितियोंको केवल भगवान‍्की प्राप्तिके साधन बना दो तथा सावधानी और शीघ्रताके साथ उनकी ओर अग्रसर होते चले जाओ।

याद रखो—भगवान‍्की ओर अग्रसर होनेका अभिप्राय है—मनका उत्तरोत्तर अधिक-से-अधिक भगवान‍्के स्मरणमें लगना। फिर भगवान‍्को कहींसे आना नहीं पड़ता, वे सदा सर्वत्र वर्तमान हैं, जब किसीको अपने लिये अनन्य साधनपरायण तथा परम आतुर देखते हैं, तभी उसे अपना दर्शन तथा मंगलमय संस्पर्श प्रदान कर कृतार्थ कर देते हैं।

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