भगवत्प्राप्ति अथवा ज्ञानकी कसौटी
याद रखो—भगवत्प्राप्ति या ज्ञान निष्काम कर्मयोग, भक्तियोग या ज्ञानयोग—किसी भी साधनके द्वारा हुआ हो, भगवत्प्राप्त या ज्ञानी पुरुषका चित्त हर अवस्थामें समतापन्न और अव्याहत शान्त रहता है। सांसारिक दु:खोंमें उसका मन उद्वेगरहित रहता है और उसे सुखकी कभी स्पृहा ही नहीं होती। राग, भय, क्रोध आदि उसमें रहते ही नहीं।
याद रखो—‘वह सांसारिक प्रिय कहलानेवाली वस्तुकी प्राप्तिमें हर्षित नहीं होता और अप्रियकी प्राप्तिमें उद्विग्न नहीं होता; वह स्थिरबुद्धि, संदेहरहित, ब्रह्मवेत्ता पुरुष नित्य ब्रह्ममें एकात्म-स्थित रहता है’।
याद रखो—वह भगवत्प्राप्त भगवत्प्रिय भक्त न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोच करता है और न कामना करता है। उसके द्वारा सारे शुभाशुभका भलीभाँति त्याग हो जाता है।
याद रखो—ऐसा पुरुष भगवत्प्राप्ति या ज्ञानरूप लाभको प्राप्त होकर उससे अधिक अन्य कुछ भी लाभ मानता ही नहीं। इस भगवत्प्राप्त-स्थितिमें वह बडे़ भारी दु:खसे भी चलायमान नहीं होता।
याद रखो—भगवद्गीताके उपर्युक्त वचनोंके अनुसार भगवत्प्राप्त पुरुष समस्त सांसारिक द्वन्द्वोंसे अतीत हो जाता है। उसमें आलस्य, जडता, संकीर्णता, ईर्ष्या, मोह, काम, क्रोध, लोभ, अभिमान, मद, हिंसा आदि दोष तो रहते ही नहीं, दैवी सम्पदाके सद्गुणोंका स्वाभाविक विकास हो जाता है और वे सहज ही बढ़ते रहते हैं; पर वह अपनेको इन गुणोंके कारण गुणी नहीं मानता। उसके मनमें गुणाभिमान नहीं होता। वह सद्गुणोंको लेकर अपनेको बड़ा नहीं मानता। जैसे सूर्यमें सहज ही प्रकाश रहता है, वैसे ही उसमें सहज ही दैवी सम्पदाके सद्गुणोंका विकास रहता है।
याद रखो—आध्यात्मिक साधनाके साथ चरित्रका अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है। कोई अपनेको आध्यात्मिक साधनमें उन्नत मानता हो और उसके चरित्रमें पवित्रता तथा दैवी सम्पदाके गुणोंका विकास न हो, यह सर्वथा असम्भव है। अन्तरमें यदि सत्य परमात्माकी अनुभूति है तो उसका बाहर भी प्रकाश होगा ही। सूर्यके साथ जैसे रात्रि नहीं रह सकती, वैसे ही भगवत्-प्रकाशके साथ पापमूलक विषयान्धकार नहीं रह सकता। यह कसौटी है—इस बातको जानने-परखनेकी कि हमारी आध्यात्मिक उन्नति हो रही है या नहीं; यदि हो रही है तो दैवी सम्पदाके गुणोंका प्रकाश तथा परिवर्द्धन होगा ही।
याद रखो—कोई अपनेको भगवत्प्राप्त या ज्ञानी बताये और दूसरे लोग भी उसे भगवत्प्राप्त या ज्ञानी मानते हों, पर जबतक उसे यथार्थ सत्-परमात्माकी उपलब्धि नहीं होती, तबतक बड़ी-बड़ी बातोंके कहने-सुननेसे कुछ नहीं होता। मुझे महान् ब्रह्म-पदार्थ मिल गया, यह कहनेसे काम नहीं चलता; उस पदार्थकी प्राप्तिके साथ-साथ सारे अभावोंका नाश हो जाना चाहिये। उसकी प्राप्तिके बाद और कुछ प्राप्त करना शेष नहीं रहना चाहिये।
याद रखो—इस भगवत्प्राप्ति या ज्ञानकी कसौटी है—अहंता, ममता, राग, कामना, वासना तथा इनके कारण उदय होनेवाले समस्त दुर्विचारों और दुर्गुणोंका नाश, चित्तमें अखण्ड अनन्त शान्ति एवं एकमात्र परमानन्दसागरमें एकात्मता।
याद रखो—इसीके लिये योगके यम-नियम, भक्तिके दास्यादि रस, ज्ञानके साधन-चतुष्टय, मनुकथित दस मानवधर्म आदि साधन बतलाये गये हैं। भगवत्प्राप्तिका एकमात्र लक्ष्य रखकर निष्कामभावसे यथारुचि सावधानी तथा लगनके साथ इन साधनोंका सेवन करना चाहिये।