एक ही परमात्माकी अनन्तरूपोंमें अभिव्यक्ति
याद रखो—परमात्मा एक हैं और वही अनन्त रूपोंमें अभिव्यक्त हैं। जबतक उन परमात्माका बाहर-भीतर—सर्वत्र सदा साक्षात्कार नहीं होता, तबतक कभी भी सदा रहनेवाली वास्तविक सुख-शान्ति नहीं मिल सकती।
याद रखो—जैसे एक ही अग्नि अव्यक्तरूपसे समस्त ब्रह्माण्डमें व्याप्त है, उसमें कहीं कोई भेद नहीं है, पर जब वही किसी आधार-वस्तुमें व्यक्त होकर प्रज्वलित होती है, तब वह उसी वस्तुके आकारका दृष्टिगोचर होने लगती है; वैसे ही समस्त प्राणियोंके अन्तरात्मारूपमें विराजित अन्तर्यामी परमात्मा सबमें समभावसे व्याप्त हैं, उनमें कहीं कोई भेद नहीं है, तथापि वे एक होते हुए ही उन-उन प्राणियोंके अनुरूप विभिन्न रूपोंमें दिखायी देते हैं। पर वे उतने ही नहीं हैं, उन सबके बाहर भी अनन्त रूपोंमें स्थित हैं।
याद रखो—जैसे एक ही वायु अव्यक्तरूपसे समस्तब्रह्माण्डमें व्याप्त है, उसमें कोई भेद नहीं है; परंतु व्यक्त होकर विभिन्न वस्तुओंके संयोगसे वह उन्हींके अनुरूप गति तथा शक्तिमान् दिखायी देता है, वैसे ही समस्त प्राणियोंके अन्तरात्मा परमात्मा एक होते हुए ही उन-उन प्राणियोंके सम्बन्धसे विभिन्न पृथक्-पृथक् गति और शक्तिवाले दिखायी देते हैं और उन सबके बाहर भी अनन्त-असीम असंख्य विलक्षण रूपोंमें स्थित हैं।
याद रखो—जैसे एक ही सूर्य समस्त लोकोंको प्रकाशित करता है, उसीका प्रकाश प्राणिमात्रके नेत्रोंमें प्रकाश देता है और प्राणिमात्र उन्हीं नेत्रोंसे विभिन्न प्रकारके बाहरी दोषोंमें लिप्त होते हैं—गुण-दोषमय वस्तुओंको देखते हैं। प्राणी नेत्रोंकी सहायतासे विभिन्न प्रकारके गुण-दोषमय कर्म करते हैं, पर उन सबका प्रकाशक वह सूर्य जैसे किसीके उन गुण-दोषोंसे लिप्त नहीं होता, वैसे ही सब प्राणियोंके अन्तरात्मा—परमात्मा, (उन परमात्माकी ही शक्ति-सत्तासे क्रियाशील होकर मन-बुद्धि-इन्द्रियोंके द्वारा) प्राणी अनन्त प्रकारके जो शुभाशुभ कर्म करते हैं, उन क्रूर कर्मोंसे एवं उनके फल-रूप सुख-दु:खसे लिप्त नहीं होते। वे सबमें रहते हुए ही सबसे पृथक् तथा सर्वथा असंग रहते हैं।
याद रखो—ऐसे वे परमात्मा सदा ही सबके अन्तरात्मा हैं, एक अद्वितीय हैं। सबको सदा अपने वशमें रखते हैं। वे एक ही अपने रूपको अपनी लीलासे बहुत प्रकारका बनाये हुए हैं। उन परमात्माको जो धीर-ज्ञानी पुरुष निरन्तर अपने अन्दर देखते हैं, उन्हींको नित्य सनातन सदा रहनेवाला आत्यन्तिक सुख परमानन्द मिलता है, दूसरोंको नहीं।
याद रखो—जो समस्त नित्योंके भी नित्य आत्मा हैं, जो समस्त चेतनोंके चेतन आत्मा हैं और जो एक होते हुए भी इन अनन्त जीवोंकी कामनाओंको पूर्ण करते हैं, उन नित्य आत्मामें स्थित एक परमात्माको जो धीर-ज्ञानी पुरुष निरन्तर देखते रहते हैं, उन्हींको नित्य सनातन (सदा रहनेवाली) शान्ति मिलती है, दूसरोंको नहीं।
याद रखो—यह तत्त्वज्ञानी भगवत्प्राप्त पुरुषोंका अनुभव है। यह वेदवाणी है। यह उपनिषद्की घोषणा है। इसको समझो और इसके अनुसार साधन करके परमात्माको नित्य-निरन्तर बाहर-भीतर देखो एवं अपने मानव-जीवनको सफल करो।