गीता गंगा
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एकमात्र भगवान‍्में ही राग करें

याद रखो—राग और द्वेष मनुष्यके बहुत बडे़ शत्रु हैं, जो प्रत्येक इन्द्रियके प्रत्येक विषयमें स्थित रहकर तुम्हारे जीवनसंगी बने तुम्हारे परम अर्थको निरन्तर लूट रहे हैं। राग-द्वेषसे ही काम-क्रोधकी उत्पत्ति होती है, जो समस्त पापोंके मूल हैं।

याद रखो—जिसके मनमें भोगकामना है, वह कभी सच्चे अर्थमें सुखी नहीं हो सकता। कामनाकी पूर्तिमें एक बार सुखकी लहर-सी आती है, पर कामना ऐसी अग्नि है, जो प्रत्येक अनुकूल भोगको आहुति बनाकर अपना कलेवर बढ़ाती रहती है। जितनी-जितनी कामनाकी पूर्ति होती है,उतनी-उतनी कामना अधिक बढ़ती है। कामना अभावकी स्थितिका अनुभव कराती है और जहाँ अभाव है, वहीं प्रतिकूलता है एवं प्रतिकूलता ही दु:ख है। अतएव कामना कभी पूर्ण होती ही नहीं और इसलिये मनुष्य कभी दु:खसे मुक्त हो ही नहीं सकता। कामना बडे़-से-बडे़ समृद्धिमान् वैभवशाली पुरुषको भी दीन बना देती है, कामना बड़े-से-बड़े विचारक तथा बुद्धिमान् पुरुषके मनमें भी अशान्तिका तूफान खड़ा कर देती है। कामनाकी अपूर्तिमें क्षोभ तथा क्रोध होता है, जो मनुष्यको विवेकशून्य बनाकर उसको सर्वनाशके पथपर तेजीसे आगे बढ़ाता है। इसलिये इन काम-क्रोधके मूल राग-द्वेषका त्याग करो।

याद रखो—यदि राग-द्वेषका त्याग न हो तो उनके विषयोंको तो जरूर बदल डालो। राग करो—श्रीभगवान‍्में; उनके स्वरूप-गुण-लीलामें, उनके नाममें और उनमें आत्मसमर्पित उनके भक्तोंमें, द्वेष करो—अपने दुर्गुणोंमें, दुर्विचारोंमें, बुरे कामोंमें, पापोंमें, अन्त:करणकी बुरी वृत्तियोंमें, भोगासक्तिमें और विषय-सुखकी कामनामें। बस, फिर ये राग-द्वेष ही तुम्हारे परम अर्थके—आध्यात्मिक सम्पत्तिके रक्षक और पोषक बन जायँगे। अग्निसे घरमें आग लगकर सब कुछ भस्म हो जाता है और अग्निसे ही यज्ञकर्म सम्पन्न होनेपर सब कुछ प्राप्त हो जाता है।

याद रखो—भगवान‍्में राग होनेपर भगवद्विरोधी अपने तन-मनके कार्योंमें द्वेष होगा ही। जिनमें द्वेष होता है, वे बुरे लगते हैं और मनुष्य उनका विनाश चाहता है। अतएव भगवान‍्में उत्पन्न राग स्वभावत: ही शरीर तथा मनसे होनेवाले दुष्कर्म तथा दुष्ट विचारोंका नाश कर देता है। भगवान‍्में राग ही परम दुर्लभ भगवत्प्रेम है और पापमें द्वेष ही सच्चा वैराग्ययुक्त परम साधन है।

याद रखो—भगवान‍्में तुम्हारा राग बढे़, इसके लिये भगवान‍्के स्वरूप, गुण, चरित्र, लीला आदिका बार-बार श्रवण करो, कीर्तन करो, चिन्तन करो, मनन करो और इसमें गौरव, आनन्द तथा शान्तिका अनुभव करो। भगवान‍्के अतुलनीय सुन्दर मधुर परम पावन नाम-रूप भगवान‍्के अप्रतिम अनन्त ऐश्वर्य-गुण, भगवान‍्के चिदानन्दमय अनुपम सौन्दर्य-माधुर्य, भगवान‍्के सर्व विलक्षण तत्त्व-स्वरूप आदिके श्रवण-कीर्तन-मननसे जितना ही मन उनकी ओर आकर्षित होगा, जितनी ही उनमें रुचि बढे़गी, उतना ही उनमें राग बढे़गा, उतनी ही उनमें प्रीति बढे़गी, उतनी ही उत्तरोत्तर उनके प्रति आत्मसमर्पणकी अधिकाधिक लालसा बढे़गी।

याद रखो—भगवान‍्में पूर्ण आत्मसमर्पणकी लालसाका उदय बहुत ऊँची साधनाका फल है एवं स्वयं परम तथा चरम साधन है, जो भगवत्प्रेमरूप सुदुर्लभ वस्तु प्रदान कराकर भगवान‍्का अभिन्नस्वरूप—निजजन बना देता है।

याद रखो—पूर्ण आत्मसमर्पणकी लालसा जाग्रत् होनेपर उसमें बड़ी-से-बड़ी भोगकामना तो रहती ही नहीं, मोक्षकामना भी छिप जाती है। एकमात्र भगवान‍्के परम पावन सुरेन्द्र-मुनीन्द्र वन्दित चरणकमलोंकी शरण ही उसकी सारी कामना, वासना, इच्छा, अपेक्षा, स्पृहा, लालसा आदिका विषय हो जाती है।

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