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हिंसा महापाप है

याद रखो—हिंसा तीन प्रकारसे होती है—स्वयं करे, दूसरेसे कहकर करवाये, कोई हिंसा करता हो तो उसका समर्थन करे। इसीके तीन नाम हैं—कृत, कारित और अनुमोदित। फिर वह तीन कारणोंसे होती है मनसे, वचनसे, क्रियासे—मानसिक, वाचिक, शारीरिक। मनसे किसीका भी, किसी प्रकारसे भी तथा किसी प्रकारका भी अहित-अनिष्ट, ह्रास-विनाश चाहना मानसिक हिंसा है; वाणीसे बोलकर किसीके अहित-अनिष्ट, ह्रास-विनाशकी बात कहना वाचिक हिंसा है और अपने शरीरके द्वारा किसीका अहित-अनिष्ट, ह्रास-विनाश करना शारीरिक हिंसा है।

याद रखो—हिंसा महापाप है। जो मनुष्य मन, वाणी, शरीरसे कृत-कारित-अनुमोदित किसी भी प्रकारकी हिंसा करता है, उसे मरनेके पश्चात् बहुत लम्बे समयतक भीषण नरक-यन्त्रणाका भोग करना पड़ता है और स्थूल योनि प्राप्त होनेपर भाँति-भाँतिके स्वेच्छा, परेच्छा और अनिच्छासे प्राप्त भयानक क्लेश भोगने पड़ते हैं।

याद रखो—हममेंसे कोई भी मनुष्य अपना अहित-अनिष्ट—किसी प्रकारका भी कुछ भी नुकसान होना नहीं चाहता और यदि कोई दूसरा हमारा नुकसान करता है तो हमें बड़ा दु:ख होता है, इसी प्रकार हम जब किसी दूसरेका नुकसान करते हैं तो उसे भी बड़ा दु:ख होता है और हमारे मनमें जैसे हमारा नुकसान करनेवालेको उसका दण्ड मिले—ऐसी सहज इच्छा होती है, वैसे ही दूसरेके मनमें भी हमारे द्वारा उसका नुकसान होनेपर हमें भी दण्ड मिले, ऐसी इच्छा होती है। यों द्वेष, वैर, हिंसा बढ़ते रहते हैं और परिणाममें हमें भीषण दु:ख भोगने पड़ते हैं। अतएव मनसे न किसीका कभी बुरा मनाओ—न चाहो; वाणीसे बोलकर कभी बुरा न करो और शरीरसे भी किसीको किसी प्रकारका जरा भी नुकसान न पहुँचाओ।

याद रखो—किसीके अनिष्ट होनेकी भगवान‍्से प्रार्थना करना भी हिंसा है। अतएव भगवान‍्से यही प्रार्थना करो कि वे हिंसक मनुष्योंकी हिंसा-वृत्तिका ही नाश कर दें; उनके हृदयमें सबकी भलाई, सबका हित तथा सबकी सेवा करनेकी इच्छा उत्पन्न कर दें।

याद रखो—श्रेष्ठ मनुष्य वही है, जो दूसरेका भला करनेके लिये सब तरहका त्याग सहर्ष स्वीकार करता है। अतएव ऐसे श्रेष्ठ मनुष्य बनो।

याद रखो—जो लोग मांस, मछली, अंडे आदि खाते हैं, खानेका प्रचार करते हैं, इसमें लाभ मानते-बताते हैं, मांस-उत्पादनार्थ पशु-पक्षी-मत्स्य-पालन तथा उनके वधकी योजना बनाते हैं, वध करते-कराते हैं, खरीद-बिक्री करते हैं, इससे आर्थिक लाभ उठाते हैं, ऐसे कार्योंको प्रोत्साहन देते हैं—वे सभी हत्यारे और हिंसक हैं; इसके फलस्वरूप उन्हें भयानक नरक-यन्त्रणा और बुरी-बुरी योनियोंमें दु:ख-दुर्गति भोग करनी पड़ेगी।

याद रखो—मांस आदिके व्यापारकी तरह ही पशु-पक्षी आदि जीवोंके अंगोंका, चमड़े आदिका व्यापार करनेवाले भी उनकी हिंसामें कारण बनते हैं। दवा आदिमें प्रयोग करने तथा जाँच आदिके लिये अनुसंधानशाला बनाने-बनवानेवाले भी हिंसाके प्रत्यक्ष पापी होते हैं।

याद रखो—जो मांस खाते हैं, वे स्वयं बड़ा पाप तो करते ही हैं, उनकी बुद्धि तामसी होती है, उनको भाँति-भाँतिके रोग होते हैं। उनकी वंशपरम्परा तामसी तथा क्रमश: दु:ख-यन्त्रणा भोगनेवाली बन जाती है। पापका फल तो बाध्य होकर भोगना पड़ता ही है। अतएव हिंसाकारक मांसके मानसिक-वाचिक-शारीरिक सम्पर्कसे सदा बचे रहो।

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