॥ श्रीहरि:॥
निवेदन
यह ‘शिव’ विचार-तंरगोंका सातवाँ भाग है। ये तरंगें ‘कल्याण’ के आदिसम्पादक परम श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारकी लेखनीद्वारा तरंगित हुई हैं। वे प्रतिमास ‘कल्याण’ में ‘कल्याण’ शीर्षक अग्रलेखमें अपना नाम न देकर ‘शिव’ नामसे ही अपने विचार व्यक्त करते थे।
शिव-धाराकी तरंगें दैहिक, दैविक एवं भौतिक संतापसे संतप्त मानवको केवल शीतलता ही प्रदान नहीं करती हैं, अपितु अवगाहन करनेवालेको परमार्थके उच्च शिखरपर आरूढ़ होनेमें सहायता करती हैं। संत-हृदयकी पवित्रधारा सुखशान्तिका उद्गम है। अतएव यह ‘मन्दाकिनी’ सहज ही दु:खी मानवको परमानन्द एवं दिव्यभावतक प्राप्त करा सकती है। सभीको इससे लाभ उठाना चाहिये।