सब कुछ प्रभु हैं और उनकी लीला है
याद रखो—सर्वत्र प्रभुकी ही सत्ता, शक्ति, विभूति फैली हुई है—सब प्रभुकी ही अभिव्यक्ति है। अतएव ऐसा अनुभव करो कि तुम्हारे अंदर नित्य-निरन्तर प्रभुकी सत्ता, शक्ति और विभूति भरी है। सदा इस सत्यके दर्शन करो।
याद रखो—तुम्हारे जीवनमें सदा-सर्वदा निरन्तर प्रभुका अत्यन्त मधुर संगीत बज रहा है; ऐसा अनुभव करनेपर तुम किसी भी स्थितिमें रूक्षता तथा भयका अनुभव नहीं करोगे।
याद रखो—प्रभुके साथ नित्य सत्य सम्बन्धकी अनुभूति हो जानेपर अहंता तथा ममताके—‘मैं’ तथा ‘मेरे’ के सारे पदार्थ बनें या बिगडे़ं, जीयें या मरें, उससे तुम्हारा न कुछ बिगडे़गा, न तुम्हें सुख-दु:ख ही होंगे। तुम नित्य हर हालतमें परमानन्दमें निमग्न रहोगे।
याद रखो—यहाँ जो कुछ है और जो कुछ होता है, सब प्रभु हैं और प्रभुकी लीला है। प्रभु स्वयं ही सारी लीला बनकर लीलायमान होते हैं। अतएव लीलामयमें और उनकी लीलामें कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं। वे ही निरन्तर तुम्हारे भीतर-बाहर बसे हुए लीला करते रहते हैं।
याद रखो—जो नित्य-निरन्तर बाहर और भीतर केवल उन प्रभुको ही देखता है, वह वास्तवमें उन्हींमें निवास करता है और भगवान् तो उसमें हैं ही। वे सदा हैं, सर्वथा हैं, सर्वत्र हैं। वे ही अत्यन्त दूर हैं और वे ही अत्यन्त समीप हैं। उनके सिवा कुछ भी अन्य है नहीं।
याद रखो—मिथ्या मोह तथा भ्रमसे ही प्राकृतिक पदार्थोंमें तुम उनकी सत्ता, शक्ति तथा विभूति मानकर उनका सेवन करते हो और इसीसे बार-बार घोर अशान्तिका अनुभव करते हो। इसी भ्रमके कारण तुम शोक, विषादका अनुभव करते हो और इसी भ्रमसे तुम दिन-रात, अहंता-ममता, वासना-कामना, आसक्ति-लोभ तथा क्रोध-हिंसाकी अग्निमें अनवरत जलते रहते हो।
याद रखो—एक प्रभुसत्ता ही नित्य सत्य है, प्रभु ही सत्यस्वरूप हैं। उन्हींमें सदा-सर्वदा अपनेको मिलाये रखना चाहिये। उन्हींका सदा आश्रय करना चाहिये। वे ही सारी शान्ति, आनन्द तथा आत्यन्तिक सुखके एकमात्र मूल स्रोत हैं, वे ही निर्मल शान्ति-सुखके अनन्त समुद्र हैं। तुम अपने जीवनमें नित्य उन्हीं आत्यन्तिक शान्ति तथा आत्यन्तिक सुखके स्वरूप भगवान्से चिपटे रहो। एक क्षणके लिये भी उनसे विलग होनेकी कल्पनातक मत करो।
याद रखो—उन प्रभुको कहींसे आना नहीं है। वे सदा-सर्वत्र वर्तमान हैं। ऐसा कोई देश-काल-वस्तु है ही नहीं, जिसमें वे न हों। उन्हींकी सत्तासे सबकी सत्ता है, उन्हींकी शक्तिसे सब शक्तिमान् हैं, उन्हींकी विभूतिसे सबमें विभूति है।
याद रखो—प्राकृतिक पदार्थ बनने तथा नष्ट होनेवाले हैं। इनका सृजन-संहार होता रहता है। प्रकृतिकी प्रत्येक वस्तु अनित्य और अपूर्ण है; परन्तु भगवान् अनादि, अनन्त, नित्य वर्तमान हैं। वे सदा स्वरूपसे ही परिपूर्ण हैं। तुम उन्हींका आश्रय करो। उन्हींकी सत्तामें अपनी सत्ताको मिला दो।