सच्चे सुखकी प्राप्तिका उपाय
याद रखो—जहाँ सांसारिक भोगोंकी नयी-नयी इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं और आवश्यकताएँ बढ़ती रहती हैं, वहाँ सहज ही अभावका अनुभव होता रहता है। कैसी भी महान् सम्पन्न स्थिति हो, कभी संतोष नहीं होता और असंतोष ही दु:खका हेतु है।
याद रखो—साधारण, सुगम तथा सादे जीवन-निर्वाहके लिये मनुष्यकी आवश्यकता बहुत अधिक नहीं होती और उस आवश्यकताकी पूर्तिके लिये इच्छा तथा विधिसंगत कर्म भी करना अनुचित नहीं है—उसमें आपत्ति नहीं है। इस आवश्यकताकी पूर्तिमें बहुत कठिनता भी नहीं होती। व्यसन तथा तृष्णाजनित बढ़ी हुई इच्छा तथा आवश्यकताओंमें जो निरन्तर एक अभावका अनुभव होता रहता है, वह भी इसमें नहीं होता। इसलिये सहज ही जीवनमें सुख रहता है।
याद रखो—सुख किसी सम्पत्ति या स्थितिमें नहीं है; सुख है अभावके अनुभवसे रहित संतोषकी वृत्तिमें। यह वृत्ति किसी बाह्य अवस्थाविशेषकी अपेक्षा नहीं करती। प्रत्येक परिस्थितिमें मनुष्य संतुष्ट रह सकता है—तृष्णाजनित अभाव-आवश्यकताकी अग्निके बुझ जानेपर तथा परम सुहृद् भगवान्के मंगलमय विधानपर विश्वास करनेपर।
याद रखो—अपनी सहज सुखकी स्थितिसे, प्रत्येक परिस्थितिको मंगलमय मानने-जाननेकी वृत्तिसे और यथालाभ संतुष्ट रहनेके स्वभावसे विचलित होकर जब मनुष्य विविध भोगोंकी वासना—तृष्णाके जालमें फँस जाता है, जब उसके हृदयमें दुष्पूरणीय तथा उत्तरोत्तर बढ़नेवाली कामनाकी आग जल उठती है, तब किसी भी स्थितिमें वह संतुष्ट नहीं होता—अतएव कभी भी वह दु:खसे मुक्त नहीं हो सकता। उसका संताप—दु:ख उत्तरोत्तर बढ़ता ही चला जाता है। इस प्रकार मनुष्य स्वयं ही अनावश्यक भोग-कामनाओंको हृदयमें जगाकर दु:खोंको बुला लेता है और जीवनके अन्तिम श्वासतक—मृत्युके बिन्दुतक असंख्य दु:खोंसे घिरा रहता है। उसका मन कभी चिन्तारहित, प्रशान्त और संतापशून्य होकर सुखके दर्शन नहीं कर पाता।
याद रखो—यहाँ जो भोगोंके अभावकी आगमें जलता हुआ मरता है, मरनेके बाद भी लोकान्तरमें उसे उसी आगमें जलना पड़ता है। यहाँकी कामना-वासना उसके अंदर वहाँ भी ज्यों-की-त्यों वर्तमान रहकर उसे संतप्त करती रहती है।
याद रखो—इसके विपरीत जो अनावश्यक भोगकामनाओंसे मुक्त है, जिसका मन हर हालतमें संतुष्ट है, जो कभी भी अभावका अनुभव नहीं करता और सदा सहज ही परम सुहृद् भगवान्के मंगलमय विधानके अनुसार प्राप्त प्रत्येक परिस्थितिमें भगवान्की कृपाके दर्शन करता रहता है, वह मृत्युके समय भोगोंसे सर्वथा विरत और भगवान्की मंगलमयी स्मृतिमें संलग्न रहता है। उसका मन भोगोंके अभावका अनुभव नकरके भगवान्के परम सौहार्दका अनुभव करके आह्लादसे भरा रहता है। वह अत्यन्त शान्ति-सुखके साथ देह-त्याग करके जाता है और भगवान्की स्मृतिमें ही मृत्यु होनेके कारण मृत्युके अनन्तर वह निश्चितरूपसे निस्संदेह भगवान्को ही प्राप्त होता है—‘मामेवैष्यस्यसंशयम्।’