श्रीमद्भगवद्गीतानुसार भगवत्प्राप्तिके उपाय
याद रखो—भगवान्की गुणमयी माया बड़ी ही दुस्तर है, उससे तर जाना बड़ा ही कठिन है; परंतु भगवान्के ही शरण होकर उनका भजन करनेपर मायासे सहज ही तरा जाता है। भगवान्ने कहा है—
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।
(गीता ४।१४)
याद रखो—भगवान्की प्राप्ति बड़ी कठिन है, पर भगवान्में मन-बुद्धि लगाकर जो सदा-सर्वदा भगवान्का स्मरण करता है, अन्तकालमें उसको भगवान्की ही स्मृति होती है और वह निस्संदेह भगवान्को ही प्राप्त होता है। भगवान्ने कहा है—
मामेवैष्यस्यसंशयम्।
(गीता ८।७)
याद रखो—भगवान्का प्राप्त होना बहुत ही दुर्लभ है, पर जो मनको अनन्य करके नित्य-निरन्तर भगवान्का स्मरण करता है, उस नित्ययुक्त भक्तको भगवान् सुलभतासे मिल जाते हैं। भगवान्ने कहा है—
तस्याहं सुलभ: पार्थ।
(गीता ८।१४)
याद रखो—साधनकी रक्षा (आवश्यक प्राप्त वस्तुकीरक्षा) और साध्यकी प्राप्ति (जिसका प्राप्त करना हमारे लिये अनिवार्य है)-को ‘योगक्षेम’ कहते हैं। इस ‘योगक्षेम’ का भार मनुष्य उठाना चाहता है; पर वह असफल होता है; किंतु वह यदि भगवान्का अनन्य चिन्तन करते हुए भगवान्की उपासना करे तो उसके ‘योगक्षेम’ का सारा भार स्वयं भगवान् वहन करते हैं। भगवान्ने कहा है—
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥
(गीता ९।२२)
याद रखो—पापी मनुष्यका पापसे मुक्त होकर साधु, धर्मात्मा, शाश्वत शान्तिका अधिकारी होना प्राय: असम्भव-सा है; परंतु अनन्यभाक् होकर भगवान्का भजन करनेपर महान् पापी भी साधु, धर्मात्मा, शाश्वत शान्तिका अधिकारी और भक्त बन जाता है और ऐसे भक्तके कभी पतन न होनेकी प्रतिश्रुति देते हुए भगवान् कहते हैं—
कौन्तेय प्रति जानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति॥
(गीता ९।३१)
याद रखो—भगवान् सबके हैं और उनको अपना मानकर तथा उनके अपने बनकर उनका भजन करके परम गतिको प्राप्त करनेके ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री तथा पापयोनितक सभी अधिकारी हैं। इसलिये इस अनित्य और सुखरहित जगत्में पैदा होकर नित्य जीवन तथा अखण्ड-अनन्त-आत्यन्तिक सुखकी प्राप्ति चाहनेवाले प्रत्येक व्यक्तिको भगवान्का भजन ही करना चाहिये। भगवान् कहते हैं—
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्॥
(गीता ९।३३)
याद रखो—जो भगवान्में चित्त और प्राण अर्पण करके परस्पर भगवच्चर्चा करते, भगवान्के भजनका रहस्य समझते, भगवान्का ही नाम-गुण-गान करते, इसीमें संतुष्ट रहते तथा इसीमें प्रीति करते हैं—ऐसे निरन्तर प्रीतिपूर्वक भगवान्का भजन करनेवाले पुरुषोंको स्वयं भगवान् ‘बुद्धियोग’ देकर अपनी प्राप्ति करवा देते हैं। भगवान् कहते हैं—
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते॥
(गीता १०।१०)
याद रखो—मृत्युरूपी संसार-सागर बड़ा दुस्तर है; पर जो लोग भगवान्में चित्त लगाकर भगवान्का ही आश्रय कर लेते हैं, उन्हें स्वयं भगवान् शीघ्र-से-शीघ्र सुखपूर्वक पार उतार देते हैं। भगवान् कहते हैं—
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्॥
(गीता १२।७)
याद रखो—जीवनयापनमें—साधनामें बड़ी-बड़ी बाधाएँ आती हैं। उनसे पार हो जाना सहज नहीं होता, पर भगवान्में चित्त लगानेसे—भगवान्पर अनन्य निर्भरता होनेसे, भगवान्की कृपासे मनुष्य सारी बड़ी-से-बड़ी कठिनाइयोंसे—बाधाओंसे पार उतर जाता है। भगवान् कहते हैं—
मच्चित्त: सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
(गीता १८।५८)
याद रखो—अनन्त जन्मोंके अनन्त संचित पाप हैं, जिनसे बार-बार जन्म-मृत्युके चक्रमें पड़ना होता है, कभी छुटकारा नहीं मिलता। नयी-नयी पाप-वासनाएँ, नये-नये पाप-कर्म और नये-नये पाप-परिणाम आते रहते हैं। मनुष्यका अपने पुरुषार्थसे—शक्ति, सामर्थ्यसे इनसे छुटकारा पाना असम्भव-सा है परंतु यदि वह सब धर्मोंका आश्रय छोड़कर एकमात्र भगवान्के शरण हो जाता है तो भगवान् उसे सब पापोंसे (पापसंचय, पापप्रवृत्ति, पापपरिणाम—सभीसे) मुक्त कर देते हैं, उसे शोक नहीं करना पड़ता। भगवान् कहते हैं—
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
(गीता १८।६६)