Hindu text bookगीता गंगा
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असली गहना

एक ‘चक्ववेण’ नामके राजा थे। वे बड़े धर्मात्मा थे। राजा और रानी दोनों खेती करते थे और खेतीसे जितना उपार्जन हो जाय, उससे अपना निर्वाह करते थे। राज्यके धनको वे अपने काममें नहीं लेते थे। प्रजासे जो कर लेते थे, उसको प्रजाके हितमें ही खर्च करते थे। राजा होते हुए भी वे साधारण मोटा कपड़ा पहनते थे और भोजन भी साधारण ही करते थे।

एक दिन नगरमें कोई उत्सव हुआ। नगरकी स्त्रियाँ रानीके पास आयीं। उन स्त्रियोंने बढ़िया-बढ़िया रेशमी वस्त्र तथा हीरे-पन्नेसे जड़े हुए सोनेके गहने पहन रखे थे। उन्होंने रानीको देखा तो कहा कि आप हमारी मालकिन हो, आपके तो हमारेसे भी बढ़िया गहने-कपड़े होने चाहिये, पर आपने तो साधारण वस्त्र पहन रखे हैं! रानीके कोमल हृदयमें उनकी बात लग गयी। रात्रिमें उसने राजासे कहा कि आज मेरी बड़ी फजीती हुई! हमारी प्रजाकी स्त्रियोंके तो ऐसे-ऐसे बढ़िया कपड़े और गहने हैं और हम उनके मालिक हैं, हमारी यह दशा! राजाने कहा कि देखो, हम खेती करते हैं। उससे जितना पैदा होता है, उतना खर्च हो जाता है। ज्यादा पैदा होता नहीं तो अब क्या करें? प्रजासे आया हुआ धन हम अपने काममें लेते नहीं। फिर भी हम तुम्हारे लिये गहनोंका प्रबन्ध कर देंगे, तुम धैर्य रखो।

दूसरे दिन चक्ववेणने अपने एक आदमीसे कहा कि तुम लंकापति रावणके पास जाओ और उससे कहो कि चक्ववेणने आपसे कर माँगा है। उससे कर-रूपमें सोना लेकर आओ। वह आदमी लंकामें रावणके पास पहुँचा। रावणने पूछा कि कैसे आये हो? वह बोला कि मेरेको महाराज चक्ववेणने आपसे कर लेनेके लिये भेजा है। रावण जोरसे हँसा और बोला कि देखो, आज भी संसारमें ऐसे मूर्ख आदमी जी रहे हैं, जो रावणसे कर माँगते हैं! अक्ल कहाँ चली गयी? क्या रावण कर देगा? वह आदमी बोला कि आपको अब कर देना पड़ेगा, आप दे दो तो अच्छी बात है। रावणने तिरस्कारपूर्वक कहा कि मेरे सामने ऐसी बात कहनेकी तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गयी? चला जा यहाँसे!

रातमें रावण मन्दोदरीसे मिला तो उससे कहा कि ऐसे-ऐसे मूर्ख हैं संसारमें! आज चक्ववेणका एक आदमी आया था और मेरेसे कर-रूपमें सोना माँग रहा था! मन्दोदरी बोली कि आपने कर दिया कि नहीं? रावणने कहा कि तू भी ऐसी बात कहती है! तू पगली है, समझती नहीं। तू मेरी महिमा जानती है कि नहीं? मैं रावण हूँ! क्या रावण कर दिया करता है? मन्दोदरी बोली कि महाराज! आप कृपा करके कर दे दो, नहीं तो अच्छा नहीं होगा। आपको कर जरूर देना चाहिये। मन्दोदरी राजा चक्ववेणके प्रभावको जानती थी; क्योंकि वह पतिव्रता थी। पातिव्रतके प्रभावसे वह इतना जानती थी, जितना रावण भी नहीं जानता था। सुबह रावण उठकर जाने लगा तो मन्दोदरीने उसको रोक लिया और कहा कि आप थोड़ी देर ठहरो मैं आपको एक तमाशा दिखाऊँगी। रावण ठहर गया। मन्दोदरी रोजाना छतपर कबूतरोंको दाना डाला करती थी। दाना डालनेके बाद जब कबूतर दाना चुग रहे थे, तब मन्दोदरीने उनसे कहा कि ‘अगर एक भी दाना चुगा तो महाराजाधिराज रावणकी दुहाई (सौगन्ध) है!’ कबूतरोंपर इस बातका कुछ भी असर नहीं हुआ और वे ज्यों-के-त्यों दाना चुगते रहे। मन्दोदरीने कहा कि देख लिया आपका प्रभाव? रावण बोला कि कैसी पागल है! पक्षी क्या समझें कि रावण क्या है? मन्दोदरी बोली कि अब दिखाती हूँ आपको! उसने कहा कि ‘अगर एक भी दाना चुगा तो महाराज चक्ववेणकी दुहाई है।’ मन्दोदरीद्वारा ऐसा कहते ही कबूतरोंने दाना चुगना छोड़ दिया! केवल एक कबूतरीने दाना चुगा तो चुगते ही उसका सिर कट गया। कारण कि बहरी होनेके कारण उस कबूतरीने मन्दोदरीकी बात नहीं सुनी। रावण बोला कि यह तो तेरा कोई जादू है, मैं नहीं मानता इस बातको! रावण वहाँसे चला गया।

रावण राजगद्दीपर जाकर बैठा। राजा चक्ववेणका आदमी पुन: वहाँ आया और बोला कि रातमें आपने विचार किया कि नहीं? आपको कर-रूपमें सोना देना पड़ेगा। रावण हँसकर बोला कि कैसे आदमी हो तुम? देवता हमारे यहाँ पानी भरते हैं, हम कर देंगे? वह आदमी बोला कि अच्छा, आप मेरे साथ समुद्रके किनारे चलें। रावणको भय तो था नहीं, वह उसके साथ समुद्रके किनारे चला गया। उस आदमीने समुद्रके किनारे बालूसे लंकाकी आकृति बना दी। लंकाके जैसे चार दरवाजे थे, वैसे चार दरवाजे बना दिये। उसने पूछा कि लंका ऐसी ही है न? रावण बोला कि हाँ, ऐसी ही है! तुम तो बड़े कारीगर हो! वह आदमी बोला कि अब आप ध्यानसे देखें। ‘महाराज चक्ववेणकी दुहाई है’—ऐसा कहकर उसने अपना हाथ मारा और एक दरवाजेको गिरा दिया। इधर बालूसे बनी लंकाका एक हिस्सा बिखरा तो उधर असली लंकाका भी वही हिस्सा बिखर गया! अब वह आदमी रावणसे बोला कि कर देते हो कि नहीं? नहीं तो मैं अभी हाथ मारकर सारी लंका बिखेरता हूँ! रावण डर गया और बोला कि हल्ला मत कर, तेरेको जितना चाहिये, लेकर चुपचाप चला जा! रावणने उसको ले जाकर कर-रूपमें बहुत-सा सोना दे दिया।

रावणसे कर लेकर वह आदमी राजा चक्ववेणके पास पहुँचा और उनके सामने सब सोना रख दिया। चक्ववेणने वह सोना रानीके सामने रख दिया कि जितने चाहिये, उतने गहने बनवा लो। रानीने पूछा कि इतना सोना कहाँसे लाये? चक्ववेणने कहा कि यह रावणके यहाँसे कर-रूपमें मिला है। रानीको बड़ा भारी आश्चर्य हुआ कि रावणने कर कैसे दे दिया! उसने कर लानेवाले आदमीको बुलाया और उससे सारी बात पूछी कि कर कैसे लाये? उसने सारी कथा सुना दी। कथा सुनकर रानी चकरा गयी और बोली कि मेरा असली गहना तो मेरे पतिदेव हैं! दूसरा गहना मेरेको नहीं चाहिये। गहनोंकी शोभा पतिके कारण ही है। पतिके बिना गहनोंकी क्या शोभा? जिनका इतना प्रभाव है कि रावण भी भयभीत होता है, उनसे बढ़कर गहना और कोई हो नहीं सकता। रानीने उस आदमीसे कहा कि ‘जाओ, रावणको यह सब सोना लौटा दो और कहो कि महाराज चक्ववेण तुम्हारा कर स्वीकार नहीं करते।’

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