एक फूँककी दुनिया
एक बड़े विरक्त, त्यागी सन्त थे। एक व्यक्ति उनका शिष्य हो गया। वह बहुत पढ़ा-लिखा था। उसने व्याख्यान देना शुरू कर दिया। बहुत लोग उसके पास आने लगे। बाबाजीने उसको समझाया कि व्याख्यान देना कोई बढ़िया चीज नहीं है, इसमें फँसना नहीं। उनका शिष्य माना नहीं और दूसरी जगह जाकर व्याख्यान देने लगा। सब लोग वहीं जाने लगे। व्याख्यान सुननेके लिये बड़े-बड़े धनीलोग तथा स्वयं राजा भी आने लगे। बाबाजीको उसपर दया आ गयी कि मेरा शिष्य फँस जायगा!
एक दिन बाबाजी अपने शिष्यके पास पहुँचे। उसने देखा तो कहा—अरे! हमारे गुरु महाराज पधारे हैं! लोगोंने सुना तो सब बड़ी संख्यामें इकट्ठे हुए। उनका बड़ा आदर हुआ, प्रशंसा हुई, महिमा हुई कि हमारे महाराजके गुरुजी हैं! कितने बड़े हैं! सभा बैठी। राजा भी आये हुए थे। बाबाजीके मनमें क्या आयी कि उठकर राजाके पास गये और जोरसे ‘भर्र.................’ करके अपानवायु छोड़ दी! लोगोंने देखा तो उठ गये कि कुछ नहीं है! चेला तो अच्छा है, पर गुरुमें कुछ नहीं! लोग भी नाराज हुए, राजा भी नाराज हुए। बाबाजीने कहा कि आज हम यहाँसे चले जायँगे। लोग मनमें प्रसन्न हुए कि अच्छी बात है, आफत मिटी! महाराजके गुरुजी हैं, इसलिये थोड़ा आदर तो कर दें—ऐसा समझकर सभ्यताके नाते बहुत-से लोग बाबाजीको पहुँचानेके लिये आये। वहाँ एक मरी हुई चिड़िया पड़ी थी। बाबाजीने उस चिड़ियाको अँगुलियोंसे पकड़कर ऊपर उठा लिया और सबको दिखाने लगे। लोग देखने लगे कि बाबाजी यह क्या करते हैं? बाबाजीने फूँक मारी तो चिड़िया ‘फुर्र..............’ करके उड़ गयी! अब लोग वाह-वाह करने लगे कि बाबाजी तो बड़े सिद्ध महात्मा हैं! चारों तरफ बाबाजीकी जय-जयकार होने लगी।
बाबाजीने शिष्यको अपने पास बुलाया और कहा कि तू समझा कि नहीं? शिष्य बोला—क्या समझना है महाराज! बाबाजी बोले—इस दुनियाकी क्या कीमत समझी है तूने? यह सब दुनिया एक फूँककी है। एक फूँकमें भाग जाय और एक फूँकमें आ जाय! फूँककी क्या इज्जत है! इसमें कोई तत्त्व नहीं है। इसलिये मान-बड़ाईमें न फँसकर भगवान्का भजन करो। ऊँचे आसनपर बैठनेसे, व्याख्यान देनेसे कोई बड़ा नहीं हो जाता।