Hindu text bookगीता गंगा
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हल्ला मत करो

एक राजाको बोध (तत्त्वज्ञान) हो गया। उसने राजदरबारमें अपने मंत्रियोंसे पूछा कि किसीको कोई दुर्लभ वस्तु मिल जाय तो वह क्या करे? किसी मंत्रीने कहा कि उसको छिपाकर रखना चाहिये, किसीने कहा कि उसको सुरक्षित रखना चाहिये, किसीने कहा कि तिजोरीमें बन्द कर देना चाहिये, आदि-आदि। राजाको किसी मंत्रीके उत्तरपर सन्तोष नहीं हुआ। उसने अपने राज्यमें ढिंढोरा पिटवाया कि कोई जानता हो तो मेरी इस बातका उत्तर दे। राज्यके अनेक व्यक्ति आये और उन्होंने अपनी-अपनी बात राजाके सामने रखी, पर राजाको सन्तोषजनक उत्तर नहीं मिला। उसके राज्यमें एक बनिया रहता था। उसको भी बोध हो चुका था। उसने राजपुरुषोंके द्वारा राजाको कहलवाया कि किसीको कोई दुर्लभ वस्तु मिल जाय तो वह हल्ला नहीं करे, चुप रहे। राजाने यह बात सुनी तो उसको बड़ा सन्तोष हुआ कि बनिया बात ठीक कहता है! राजाने कहा कि हम खुद उससे मिलने जायँगे।

बनियेके पास समाचार पहुँचा कि अमुक समय राजा आपसे मिलनेके लिये पधार रहे हैं। नियत समयपर राजा उस बनियेके घर पहुँचा। साधारण-सा घर था। बनियेने राजाके बैठनेके लिये बोरा बिछा दिया। राजाने बनियेसे बातचीत की। फिर राजाने बनियेसे कहा कि तुम कुछ भी माँगो, मैं देनेको तैयार हूँ। बनियेने कहा—‘अब आगेसे बिना बुलाये आप आना मत और मिलनेके लिये मेरेको बुलाना मत!’ राजाने सोचा था कि अधिक-से-अधिक यह राज्य माँग लेगा, इससे अधिक और क्या माँगेगा। पर जब बनियेके मुखसे यह बात सुनी तो राजाको बड़ा आश्चर्य हुआ। राजाने कहा कि आपकी बातका तात्पर्य मैं समझा नहीं! बनियेने कहा—‘महाराज! मैंने आपको मेरेसे मिलने या मेरेको बुलानेके लिये मना किया है, पर मैं आपसे नहीं मिलूँगा—ऐसा नहीं कहा है। आपके लिये मना इसलिये किया कि लोगोंमें प्रचार हो जायगा कि इनकी राजासे जान-पहचान है। इसलिये लोग मेरेको तंग करेंगे। कोई कहेगा कि मेरा अमुक काम करवा दो, कोई कहेगा कि राजासे कहकर मेरी नौकरी लगवा दो, कोई कहेगा कि मेरी सजा माफ करवा दो, तो एक नई आफत पैदा हो जायगी! इसलिये आप न तो आयें, न मेरेको बुलायें, पर मैं जब चाहूँगा आपसे मिल लूँगा। मेरे मिलनेकी मैंने मनाही नहीं की है। वास्तवमें अब न आपको मेरेसे मिलनेकी जरूरत रही, न मेरेको आपसे मिलनेकी जरूरत रही!’

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