हीरेका मूल्य
एक बुद्धिमान् जौहरी था। अपने काममें वह बड़ा तेज था। दैवयोगसे युवावस्थामें ही वह मर गया। पीछे उसकी स्त्री तथा गोदमें एक बालक रह गया। लोगोंने उनके पैसे दबा लिये। धन नष्ट हो गया। उस स्त्रीके पास एक हीरा था, जो उसको जौहरीने दिया था। वह हीरा बहुत कीमती था। जब उसका बालक पन्द्रह-बीस वर्षका हो गया, तब उसने बालकसे कहा कि बेटा! देखो, तुम्हारे पिताजीने यह हीरा दिया था। उन्होंने इसका मूल्य नहीं बताया, प्रत्युत इसको अमूल्य बताया है। इसका मूल्य कोई करेगा तो उसकी बुद्धिका मूल्य होगा, हीरेका मूल्य नहीं होगा अर्थात् जैसी उसकी बुद्धि होगी, वैसी ही वह कीमत करेगा। इस हीरेको लेकर तुम जाओ और इसका मूल्य करा लाओ, पर हरेक जगह इसको देना नहीं!
वह लड़का हीरा लेकर बाजार गया। पहले वह एक सब्जी बेचनेवालीके पास गया और हीरा दिखाकर पूछा कि इसका क्या मूल्य दोगी? वह बोली कि दो मूली ले लो, बच्चोंके खेलनेके लिये अच्छी चीज है! वह लड़का बोला कि देना नहीं है। आगे जाकर कइयोंसे पूछा तो किसीने दो रुपये कहे, किसीने तीन रुपये कहे। आगे एक सुनारके पास गया तो उसकी कीमत दस, बीस, पचास रुपयेतक लग गयी। आगे जौहरीके पास गया तो पाँच सौ, सात सौ, एक हजार रुपयेतक कीमत हो गयी। वह लड़का ज्यों-ज्यों अच्छे जानकार आदमीके पास गया, त्यों-त्यों उसकी कीमत बढ़ती चली गयी। वह हीरेके एक अच्छे परीक्षकके पास गया तो उसने उसका मूल्य एक लाख रुपयेतक बताया। लड़केको बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह हीरा बड़ा विचित्र है! लोगोंसे पूछते-पूछते वह एक बहुत बूढ़े जौहरीके पास पहुँचा, जो बड़ा ईमानदार और हीरेका अच्छा परीक्षक था। उसको हीरा दिखाया तो उसने लड़केकी तरफ देखा और कहा—अरे! यह हीरा तेरे पास कहाँसे आया? लड़केने कहा—मेरे पिताजीने दिया था।
‘तुम्हारे पिताजी कौन?’
‘अमुक नामके हीरेके व्यापारी थे।’
‘उनका नाम तो हमने पहले भी सुना था, अब बहुत दिनोंसे उनके बारेमें सुना नहीं, क्या बात है?’
‘उनका शरीर शान्त हो गया।’
‘अहो! वे तो बड़े नामी परीक्षक थे!’
‘मैं उनका ही बेटा हूँ। इस हीरेकी क्या कीमत दोगे?’
‘इसकी कीमत नहीं है, यह अमूल्य हीरा है! मेरे पास जितना धन है, वह सब-का-सब देनेपर भी इसकी पूरी कीमत नहीं होगी!’
‘पर हम क्या करें? हमारेको तो रोटीकी तंगी हो रही है!’
‘भाई, यह तो तुम जानो। मैं हीरेकी कीमत कैसे कह दूँ? इसकी कीमत कहनेसे तो इसका तिरस्कार होगा, अपमान होगा! हाँ, एक बात है, तू जितना लेगा, उतना हम तुम्हारेको दे देंगे।’
‘वह कैसे?’
बूढ़े जौहरीने कहा—हमारी तीन दूकानें हैं। पहली दूकानमें हम तुम्हारेको पन्द्रह मिनट देंगे। पन्द्रह मिनटके भीतर तुम दूकानमेंसे जितनी वस्तुएँ बाहर निकाल दोगे, वे सब तुम्हारी हो जायँगी। वस्तु लेनेवाले और रखनेवाले सब तैयार रहेंगे। तुम केवल भीतरसे वस्तु फेंक दो। पन्द्रह मिनट पूरे होनेपर फिर तुम उसमें नहीं रह सकोगे। लड़केने कहा कि अच्छी बात है!
लड़केको दूकान दिखायी गयी। वह दूकानके भीतर गया तो देखा कि दूकान बहुत सजी हुई है। उसमें लाखों रुपयेका एक-एक हीरा रखा हुआ है। कई बक्से पड़े हुए हैं, जो चमक रहे हैं। हीरा तो दूर रहा, उसने उम्रमें ऐसा बक्सा भी नहीं देखा था। वह देखकर बहुत चकरा गया। उसके साथ एक आदमी था, जो घड़ीमें समय देख रहा था। उसने कहा कि देखो, पाँच मिनट हो गये हैं। लड़का बोला कि ठहर-ठहर, हल्ला मत कर! पन्द्रह मिनट होनेपर तो यहाँ रहने देंगे नहीं, इसलिये अच्छी तरहसे देख लूँ। देखते-देखते पन्द्रह मिनट हो गये तो वह आदमी बोला कि बस, समय पूरा हो गया है, अब बाहर निकलो। अब इसमें कोई वस्तु छू भी नहीं सकते, एक दाना भी ले नहीं सकते। लड़का बाहर निकल गया।
बूढे़ जौहरीने दूसरी दूकान दिखायी और कहा कि इसमें तुम्हारेको पचीस मिनट ठहरने दिया जायगा। इस बीच तुम जो माल बाहर फेंक दोगे, वह सब तुम्हारा हो जायगा। लड़का उस दूकानके भीतर गया। उसमें पहली दूकानसे भी बहुत विलक्षण सजावट थी। उसको देखकर वह चकरा गया कि यह तो कोई अजायबघर है! कितनी विलक्षण चीजें हैं! लड़केने पूछा कि क्या दूकान आगे और लम्बी है? वह आदमी बोला कि हाँ, आगे दूकान बहुत लम्बी तथा ज्यादा सुन्दर है। लड़का ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता गया, त्यों-त्यों अधिक सुन्दरता दीखती गयी! साथमें जो आदमी था, वह समय बताता रहा कि अब पाँच मिनट हो गये, अब दस मिनट हो गये! पर लड़केने सोचा कि अभी तो देख लें, फिर पीछे रहने नहीं देंगे। इस प्रकार देखते-देखते पचीस मिनट हो गये तो आदमीने कहा कि अब निकलो बाहर! अब कोई वस्तु छू भी नहीं सकते।
अब लड़केको तीसरी दूकान दिखायी और कहा कि इसमें तुम्हारेको साठ मिनट (एक घण्टे)-का समय दिया जायगा। पहली दूकानमें वस्तुएँ तो ज्यादा कीमती थीं, पर सजावट कम थी। दूसरी दूकानमें सजावट तो बहुत ज्यादा थी, पर वस्तुएँ कम कीमती थीं। तीसरी दूकान तो कोसोंतक फैली हुई थी। उसमें खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने आदिकी सैकड़ों वस्तुएँ थीं। कार, स्कूटर, साइकिल आदि तरह-तरहकी सवारियाँ थीं। तरह-तरहका नाच-गान हो रहा था। शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध—इन पाँचों विषयोंकी तरह-तरहकी चीजें वहाँ मौजूद थीं। वह लड़का उन चीजोंमें ही मस्त हो गया। वह कभी मोटरपर चढ़ता है, कभी बग्घीपर चढ़ता है, कभी झूला झूलता है, कभी नाटक देखता है, कभी सिनेमा देखता है। उसने वहाँ ऐसी चीजें देखीं, जो पहले कभी देखी नहीं थीं, कभी सुनी नहीं थीं। साथवाले आदमीने कहा कि देखो, पहली दूकान गयी, दूसरी दूकान भी गयी और अब तीसरी दूकान भी जा रही है! अब समय बहुत थोड़ा बचा है। अब जल्दी पीछे लौटो! उस दूकानसे निकलते-निकलते समय पूरा हो गया! दूकानसे निकलते समय उसने वहाँ रखा एक टाटका थैला उठा लिया। दूकानसे बाहर आकर देखा तो थैलेमें खोटे सिक्के, लोहेके बाट, पत्थर आदि पड़े थे!
बूढ़े मालिकने अपने आदमियोंसे कह रखा था कि वह जितनी वस्तुएँ ले, उसकी खबर मेरेको करते रहना। अन्तमें आदमियोंने खबर कर दी कि उसने कुछ नहीं लिया। मालिकने कहा कि उसको निकालो यहाँसे! उसका मुँह मेरेको मत दिखाओ! किसी कामका आदमी नहीं है। लड़का बेचारा खाली हाथ वहाँसे चला गया!
जो भाई-बहन यह कहानी पढ़ रहे हैं, उनके मनमें आती होगी कि हमारेको वह दूकान मिले तो हम आँखें मीचकर बढ़िया-बढ़िया माल बाहर फेंक दें! परन्तु वास्तवमें हमारा मनुष्य-जीवन ही वह दूकान है! हमारे जीवनके प्रथम पन्द्रह वर्ष पहली दूकान है, पचीस वर्ष दूसरी दूकान है और अन्तिम साठ वर्ष तीसरी दूकान है। जीवनके प्रथम पन्द्रह वर्ष खेल-कूदमें बीत जाते हैं। उसके बादके पचीस वर्ष ‘गदहपचीसी’ के होते हैं, जिसमें मनुष्य स्त्री और धनके चक्करमें फँस जाता है। भजन करनेके लिये उसको समय ही नहीं मिलता। अगर वह भजन-साधन करे तो यही पचीस वर्ष ‘साधन-पचीसी’ हो जाते हैं। जो इन पचीस वर्षोंमें साधन नहीं करता, वह वृद्धावस्थामें भी साधन नहीं कर पाता। चालीस वर्षकी अवस्था आनेके बाद लड़के-लड़कियोंके विवाहकी चिन्ता सताने लगती है। उनका विवाह होनेके बाद परिवार बढ़ जाता है। पारिवारिक जिम्मेवारियाँ बढ़ जाती हैं। शरीरकी शक्ति कम हो जाती है। फिर भजन करनेका समय कहाँसे मिले? इस प्रकार सांसारिक चकाचौंधमें फँसकर मनुष्य अपना अमूल्य जीवन गँवा देता है!