इन्द्रकी पोशाक
एक सीधे-सरल स्वभावके राजा थे। उनके पास एक आदमी आया, जो बहुत होशियार था। उसने राजासे कहा कि अन्नदाता! आप देशकी पोशाक पहनते हो। परन्तु आप राजा हो, आपको तो इन्द्रकी पोशाक पहननी चाहिये। राजा बोला—इन्द्रकी पोशाक? वह आदमी बोला—‘हाँ, आप स्वीकार करो तो हम लाकर दे दें!’ राजा बोला—‘अच्छा, ले आओ। हम इन्द्रकी पोशाक पहनेंगे!’ वह आदमी बोला—‘पहले आप एक लाख रुपये दे दें, बाकी रुपये बादमें लेंगे। आप रुपये देंगे, तभी इन्द्रकी पोशाक आयेगी।’ राजाने रुपये दे दिये।
दूसरे दिन वह आदमी एक बहुत बढ़िया चमचमाता हुआ बक्सा लेकर आया और सभाके बीचमें रख दिया। वह बोला—‘देखिये अन्नदाता! यह इन्द्रकी पोशाक है। यह हरेक मनुष्यको दीखती नहीं! जो असली माँ-बापका होगा, उसको तो यह दीखेगी, पर कोई दूसरा बाप होगा तो उसको यह नहीं दीखेगी।’ अब उस आदमीने उस बक्सेमेंसे इन्द्रकी पोशाक निकालनेका अभिनय शुरू किया और कहने लगा कि यह देखो, यह पगड़ी कैसी बढ़िया है! यह देखो, धोती कैसी बढ़िया है! लोग कहने लगे कि हाँ-हाँ, बहुत बढ़िया है! वास्तवमें किसीको भी पोशाक दीखी नहीं। पोशाक थी ही नहीं, फिर दीखे कैसे? पर कोई कुछ बोला नहीं; क्योंकि अगर यह बोलते हैं कि पोशाक नहीं दीखती तो दूसरे सोचेंगे कि ये असली माँ-बापके नहीं हैं। कइयोंको यह वहम हो गया कि शायद हम असली माँ-बापके न हों; क्योंकि हमारेको इसका क्या पता? पर दूसरेको तो दीखती ही होगी! इस तरह सबने हाँ-में-हाँ मिला दी। राजा भी चुप रहे। अब उस आदमीने राजाको इन्द्रकी पोशाक पहनानी शुरू की कि पहली धोती उतारकर यह धोती पहनो, यह कुरता पहनो, यह पगड़ी बाँधो आदि-आदि। परिणाम यह हुआ कि राजा जैसे जन्मे थे, वैसे (निर्वस्त्र) हो गये! उसी अवस्थामें राजा रनिवासमें चले गये। रानियोंने राजाको देखा तो कहा कि आज भाँग पी ली है क्या? कपड़े कहाँ उतार दिये? राजा बोला—तुम असली माँ-बापकी नहीं हो, इसलिये तुम्हें दीखता नहीं है। यह इन्द्रकी पोशाक है! रानियोंने कहा—अन्नदाता! आप भले ही इन्द्रकी पोशाक पहनो, पर कम-से-कम धोती तो अपने ही देशकी पहनो!