सच्चा स्वाँग
एक राजा था। उसके पास एक बहुरूपिया आया। वह तरह-तरहके स्वाँग धारण किया करता था। उसमें देवीकी ऐसी शक्ति थी कि वह जो भी स्वाँग धारण करता, उसको पूरा वैसा-का-वैसा निभाता था। उसमें वह कहीं चूकता नहीं था। राजाने कहा कि तुम एक विरक्त, त्यागी महात्माका स्वाँग लाओ। बहुरूपियेने स्वीकार कर लिया। वह कुछ दिनोंतक गुप्त रूपसे रहा। जब दाढ़ी बढ़ गयी तो वह साधुका स्वाँग लेकर शहरमें आया। वह सबके साथ सन्तकी तरह ही बर्ताव करता। किसीसे न राग रखता, न द्वेष। भिक्षामें जो मिल जाय, उसीमें सन्तोष करता। लोगोंको खूब अच्छी-अच्छी बातें सुनाता। शहरमें हल्ला मच गया कि बड़े विरक्त, त्यागी महात्मा आये हैं। राजाने मन्त्रीको भेजा कि जाकर देखो, वही बहुरूपिया है या कोई और सन्त है? मन्त्रीने जाकर देखा तो पहचान लिया कि यह तो वही बहुरूपिया है। राजाने घोषणा की कि हम सन्तके दर्शनको जायँगे। राजाने एक थालमें बहुत-सी अशर्फियाँ भर लीं और भेंट-पूजाका सामान लेकर बड़े ठाट-बाटसे वहाँ गया। मन्त्री तथा अन्य लोग भी साथमें थे। लोग कहने लगे कि ऐसे सन्तके दर्शनके लिये खुद राजा आये हैं! राजा उसके पास गया और अशर्फियोंसे भरा थाल उसके सामने रखा। सन्तने अशर्फी अथवा रुपया, कपड़ा आदि कुछ भी नहीं लिया और ‘शिव-शिव’ कहते हुए उठकर वहाँसे चल दिया। लोग कहने लगे कि अच्छा सत्संग होता था, पर राजाको पता नहीं क्या सूझी कि सत्संगमें बाधा लगा दी! राजाकी भेंट क्या काम आयी!
वह बहुरूपिया अपने असली रूपमें राजाके सामने आया और बोला कि अन्नदाता! इनाम मिल जाय। राजाने पूछा कि क्या तुम्हारे मनमें है कि मैं इतने रुपये इनाममें दूँगा? वह बोला कि आप अपनी मरजीसे जो देंगे, उसीमें मैं राजी हो जाऊँगा। राजा बोला— तू मूर्ख है! मैंने इतनी अशर्फियाँ तुम्हारे सामने रखीं, पर तुमने उनको छोड़ दिया! वह बोला—अन्नदाता! मैंने साधुका स्वाँग लिया था, फिर मैं वह काम कैसे कर सकता था, जिससे साधुके स्वाँगको बट्टा लग जाय! अगर मैं रुपयोंपर मोहित हो जाता तो मेरा स्वाँग बिगड़ जाता और भगवती माता भी नाराज हो जाती। राजा बहुत प्रसन्न हुआ कि यह बात तो ठीक कहता है। राजाने उसको बहुत-सा इनाम दिया।
एक दिन राजाने बहुरूपियेसे कहा कि तुम सिंहका स्वाँग लाओ। वह बोला कि अन्नदाता! मैं स्वाँग पूरा करता हूँ, उसमें चूकता नहीं हूँ। इसलिये आप मेरेसे सिंहके स्वाँगके लिये न कहें। यह स्वाँग खतरनाक है! राजाने कहा कि हम तो सिंहका स्वाँग ही देखना चाहते हैं। बहुरूपियेने कहा—अगर कोई नुकसान हो जाय तो पहले ही मेरा गुनाह माफ कर दें, नहीं तो कोई दूसरा स्वाँग लानेकी आज्ञा दें। राजाने कहा—हम पहलेसे ही तुम्हारा गुनाह माफ करते हैं, तुम सिंहका स्वाँग लाओ। बहुरूपिया सिंहकी खाल पहनकर सिंहावलोकन करता हुआ, इधर-उधर देखता हुआ आया। वह आकर सिंहकी तरह बैठ गया। राजाका लड़का वहाँ खेल रहा था। वह खेलते-खेलते वहाँ आया और सिंह बने हुए बहुरूपियेको पीछेसे लकड़ी मार दी। सिंहने दहाड़ लगाते हुए चट उस लड़केको मार दिया! राजाको बड़ा दु:ख हुआ कि यह कैसा स्वाँग है कि मेरा लड़का मर गया! दूसरे दिन बहुरूपिया रोता-रोता आया और बोला—अन्नदाता! आप क्षमा करें! मैंने पहले ही कह दिया था कि ऐसा खतरनाक स्वाँग मेरेसे मत मँगाओ। मेरा शक्ति माँका इष्ट है, अगर स्वाँग बिगाड़ दूँ तो माँ नाराज हो जाय। राजा बोला—तुम्हारा तो स्वाँग है, पर हमारा कितना नुकसान हो गया, राजकुमार मर गया! परन्तु अब राजा कर भी क्या सकता था! वह वचनबद्ध था। बहुरूपियेने पहले ही क्षमा माँग ली थी।
राजाके पास एक नाई रहता था। उस नाईने राजाको सलाह दी कि इस बहुरूपियेसे सतीका स्वाँग मँगाओ। सती पतिके पीछे जल जाती है। यह सतीका स्वाँग करेगा तो जलकर मर जायगा और राजकुमारको मारनेका दण्ड इसको अपने-आप मिल जायगा! हमें दण्ड देना नहीं पड़ेगा। राजाने बहुरूपियेको बुलाकर कहा कि भाई, तुम सतीका स्वाँग लाओ। वह बोला कि ठीक है अन्नदाता, ले आऊँगा। शहरमें एक लावारिस मुर्दा पड़ा हुआ था। उसको देखकर बहुरूपियेने सतीका स्वाँग बनाया। सोलह सिंगार करके, ढोल आदि बजाते हुए वह मार्गसे चला। लोगोंने देखा कि कोई स्त्री सती होने जा रही है। राजाके पास समाचार पहुँचा तो मन्त्रीसे पता लगानेको कहा। मन्त्रीने पता लगाया कि यह वही बहुरूपिया है। राजाने अपने आदमियोंको भेजा कि इसको अच्छी तरहसे जलाना, जिससे यह बच न जाय। नदीके किनारे श्मशानघाट था। लोगोंने वहाँ बहुत ज्यादा लकड़ियाँ इकट्ठी कर दीं। वह सती बना हुआ बहुरूपिया मुर्देको गोदमें लेकर चितापर बैठ गया। लकड़ियोंमें आग लगा दी गयी। इतनेमें जोरसे आँधी और वर्षा आयी। आँधी और वर्षा आनेसे सब लोग भाग गये। घरका कोई आदमी हो तो ठहरे! घरका तो कोई था नहीं। वर्षासे आग बुझ गयी और नदीमें वेग आनेसे लकड़ियाँ बह गयीं। वह बहुरूपिया लकड़ियोंके ऊपर बैठा रहा और तैरता हुआ किनारे जा लगा। देवीका इष्ट होनेसे उसके प्राण बच गये।
कुछ महीने बीत गये तो वह बहुरूपिया राजाके पास आया और बोला कि अन्नदाता! इनाम मिल जाय! राजा उसको देखकर चकरा गया और बोला—‘अरे! तू तो जलकर मर गया था न?’ वह बोला—‘मर तो गया था, पर शक्ति माँकी कृपासे पीछे आ गया हूँ’। राजा बोला—‘क्या तू हमारे बाप-दादा-परदादासे मिला?’ वह बोला—‘हाँ अन्नदाता! सबसे मिलकर आया हूँ।’ राजा बोला—‘उनका समाचार क्या लाया है?’ बहुरूपिया बोला—‘समाचार तो खुशीका है, पर उन सबकी हजामत और नाखून बहुत बढ़े हुए हैं, इसलिये उन्होंने घरके नाईको बुलाया है।’ राजा बोला—‘नाई वहाँ जायगा कैसे?’ बहुरूपिया बोला—‘जैसे बाप-दादा गये, मैं गया, ऐसे ही जायगा; क्योंकि जानेका रास्ता तो एक ही है!’ नाईने सुना तो सोचा कि अब मेरी मौत आयी! राजाकी आज्ञा हो जाय तो फिर कौन रक्षा करनेवाला है? नाई जाकर बहुरूपियेके पैर पड़ा कि तू किसी तरह मेरेको बचा, मेरा घर बर्बाद हो जायगा! घरमें कोई कमानेवाला नहीं है! बहुरूपिया बोला कि सतीका स्वाँग लानेके लिये तूने ही राजाको सलाह दी थी, अब तू भी जा! नाई बहुत गिड़गिड़ाया तो बहुरूपियेने कहा कि अच्छी बात है, मेरा तुमसे कोई वैर तो है नहीं! उसने जाकर राजासे कहा—‘अन्नदाता! वास्तवमें मैं मरा नहीं था। मेरे लिये लकड़ियाँ बहुत ज्यादा इकट्ठी की गयी थीं। अत: लकड़ियाँ जलते-जलते मेरे नजदीक आयें—इससे पहले ही आँधी और वर्षा आ गयी। लोग भाग गये और माँकी कृपासे मैं बच गया। मैंने सतीका स्वाँग किया तो जलनेसे मैं डरता नहीं हूँ। आप जो भी स्वाँग कहेंगे, मैं वैसा-का-वैसा स्वाँग लाऊँगा, स्वाँग नहीं बिगाड़ूँगा। पीछे आप जो इनाम दें, मैं प्रसन्नतापूर्वक ले लूँगा।’
तात्पर्य है कि मनुष्यको अपना स्वाँग नहीं बिगाड़ना चाहिये। पिताका, माँका, पुत्रका, भाईका, बहनका, बेटीका, सासका, बहूका, जो भी स्वाँग धारण किया है, उसको ठीक तरहसे निभाना चाहिये। जो अपने कर्तव्यका ठीक पालन करता है, उसपर भगवान् कृपा करते हैं।